(सतीश शर्मा), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
देवियों को ख़ुश करने का ऐसे ही जतन होगा।
बकरों के खप्पर होंगे और लहू से हवन होगा।।
एक मां खूंटे से बंधी तुझसे जो आस लगाएगी।
पर तेरे पास न देह होगी,तेरे पास न मन होगा।।
सफ़ेद वस्त्र पे लहू के छींटे आला औदेदारों के।
देख अपने बुरे कर्मों का,तू ख़ुद ही दर्पण होगा।।
जल जाएगी पीढ़ियां तेरे इन्हीं क़दमों से मानुष।
इस मसअले पर न जाने कब जा के मंथन होगा?
तेरी जिह्वा के स्वाद ने निर्जीवों को मार दिया।
और तू समझता है के किसी रोज़ दर्शन होगा।।
मेमनों की चीत्कार से मंदिर कब तक गूंजेगा?
इन रिवायतों का इक दिन देखना दहन होगा।।
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