बापूजी याद आते हो

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
बापूजी से डर लगता था
बापूजी झोला लेकर
दुकान जाते थे
रात को मिष्ठान लाते थे
झगड़ा बच्चों मे होता तो
डांट पिलाते थे
बिना हिस्सा लिए
ही सो जाते थे 
बापूजी आते जाते
पाठ पढाते थे
दुनियादारी क्या? 
सलीके से सिखाते थे
गरीबी मे पाला हमें
लेकिन नहीं घबराते थे
संस्कार व्यवहार
मत कभी छोङना
बार बार दोहराते थे 
बापूजी आंगन मे 
चद्दर ओढ़े जमीं पर
सो रहे थे
घर वाले क्या
पङोसी भी रो रहे थे
बांधकर बापूजी को
चार लोग ले गए
बाहर मत जाना कोई
झुठी दिलासा दे गए
काकी बोली बिमार है
डाक्टर के पास गए
कल आयेंगे आम लेकर
हम सब
बहुत खुश हुए
द्वार पर निहारते
अवरूद्ध कंठ से पुकारते
हमें कुछ भी ना चाहिए 
बापूजी चले आइये
कुछ मत लाना बापूजी 
कल जरूर आ जाना बापूजी
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

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