व्यास पूर्णिमा उत्सव से पूर्व योगगुरु स्वामी भारत भूषण ने दिया ऑनलाइन उपदेश, कहा- गुरू प्रकाशक, पथ प्रदर्शक, उदार व करुणा मूर्ति भी है

गौरव सिंघल, सहारनपुर। गुरु प्रकाशक है, पथ प्रदर्शक है उदार और करुणा मूर्ति भी। उनके प्रति श्रद्धा गुरुपूर्णिमा के एक दिन तक सीमित न रह जाए, ये अस्तित्व से जुड़ी कहानी है। व्यासपूर्णिमा उत्सव से पहले मोक्षायतन अंतर्राष्ट्रीय योग संस्थान के शिष्यों को ऑन लाइन उपदेश करते हुए योगगुरु स्वामी भारत भूषण ने कहा कि मूल से कटने के बाद वृक्ष में भी जीवन कहां रह जाता है ? गुरु हमें स्वयं, परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति अपना धर्म निभाने के लिए तैयार करता है। सच्चे शिष्य को "कोऊ नृप होय हमहु का हानि" सोचने के बजाय सामाजिक और राष्ट्रीय ऋण से मुक्त होने के लिए भी सक्रिय होने में हित है। उसे अंतर्मुखी होकर स्वयं को साधना और सशक्त बनाना और उस शक्ति से समाज और राष्ट्र को भी संवारते हुए इससे भी उऋण होना है। हमें आकार देने में समाज और राष्ट्र का भी कम बड़ा योगदान नहीं है। इसीलिए ऋषि परंपरा में वेदों ने "वयम राष्ट्रे जाग्रयाम पुरोहिता" जैसे संकल्प लेने और राष्ट्रीय प्रार्थना मंत्र "आ ब्रह्मन..." को ऋग्वेद में स्थान दिया है। जिम्मेदारियों से मुक्त होने और विमुख होने में बड़ा अंतर है ये शिष्यों को समझना होगा।स्वामी भारत भूषण ने कहा कि गुरु को लेकर भ्रम न पालें। गुरु हमारे संकट ओढ़ता नहीं, हमे संकट से बचाता और उबारता है। कर्म फल से हम मुक्त नहीं हो सकते! कोई भी नहीं, गुरु भी नहीं! वह तो हमे स्वयं ही भोगना होता है।आग में हाथ डालने पर हाथ तो मेरा ही जलेगा ना!

 "कर्त्तव्यम तु भोक्तव्यम कृत कर्म शुभाशुभम..... ।" उन्होंने कहा कि गुरु ईश्वर से भी बढ़कर होता है लेकिन ध्यान रहे वह ईश्वर नहीं! गुरु को प्रथम वंद्य इसलिए माना गया कि उससे ही ईश्वरीय ज्ञान और उसे पाने का मार्ग मिलता है, किंतु वह भी पाना हमे स्वयं अपनी ऊर्जा से ही होगा। संस्थान में गुरुपूर्णिमा उत्सव कल सवेरे नौ बजे से होगा।

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