शिवपुराण से (रूद्र संहिता तृतीय पार्वती खण्ड) (480) गतांक से आगे......

पार्वती का नामकरण और विद्याध्ययन, नारद का हिमवान् के यहां  जाना, पार्वती का हाथ देखकर भावी फल बताना, चिन्तित हुए हिमवान् को पार्वती का विवाह शिवजी के साथ करने को कहना और उनके संदेह का निवारण करना

इसमें संशय नहीं, परन्तु इस रेखा के कुफल से बचने के लिए एक उपाय भी है, उसे प्रेमपूर्वक सुनों। उसे करने से तुम्हें सुख मिलेगा। मैंने जैसे वर का निरूपण किया है, वैसे ही भगवान् शंकर हैं। वे सर्वसमर्थ हैं और लीला के लिए अनेक रूप धारण करते रहते हैं। उनमें समस्त कुलक्षण सद्गुणों के समान हो जायेंगे। समर्थ पुरूष में कोई दोष भी हो तो वह उसे दुःख नहीं देता। असमर्थ के लिए ही वह दुःखदायक होता है। इस विषय में सूर्य, अग्नि और गंगा का दृष्टान्त सामने रखना चाहिए। इसलिए तुम विवेकपूर्वक अपनी कन्या शिवा को भगवान् शिव के हाथ में सौंप दो। भगवान् शिव के सबके ईश्वर, सेव्य, निर्विकार, सामथ्र्यशाली और अविनाशी हैं। वे जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। अतः शिवा को ग्रहण कर लेंगे, इसमें संशय नहीं है। विशेषतः वे तपस्या से वश में हो जाते हैं। यदि शिवा तप करे तो सब काम ठीक हो जायेगा। सर्वेश्वर शिव सब प्रकार से समर्थ हैं। वे इन्द्र के वज्र का भी विनाश कर सकते हैं। ब्रह्माजी उनके अधीन हैं तथा वे सबको सुख देने वाले हैं। पार्वती भगवान् शंकर की प्यारी पत्नी होगी। वह सदा रूद्रदेव के अनुकूल रहेंगी, क्योंकि यह महासाध्वी और उत्तम व्रत का पालन करने वाली हैं तथा माता-पिता के सुख को बढ़ाने वाली हैं।                                                                                                              (शेष आगामी अंक में)

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