स्वयं में इतिहास समेटे हुए है मानकी गांव स्थित सिद्धपीठ श्री मनकेश्वर महादेव मंदिर

गौरव सिंघल, देवबंद। सिद्धपीठ श्री मनकेश्वर महादेव मंदिर स्वयं में इतिहास समेटे हुए है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने समुंद्र मंथन के दौरान मानकी गांव की धरा पर ही आसन जमाया था। जिससे इस मंदिर की मान्यता भी नीलकंठ महादेव के मंदिर के समान ही मानी जाती है। श्री मनकेश्वर महादेव मंदिर में प्रदेश ही नहीं अपितु अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए माथा टेकने स्वयंभू प्रकट शिवलिंग के दर्शन को मानकी गांव में आते हैं। मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना होने के साथ ही अपने अंदर विभिन्न प्रकार की चमत्कारिक घटनाओं को समेटे हुए है। मंदिर शिवभक्तों की अटूट आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि सामाजिक सद्भाव की भी जीती जागती मिसाल है। किदंवती है कि मानकी गांव के एक मुसलमान गाड़ा परिवार ने खेत में हल चलाते समय एक काले पत्थर को ऊपर आते देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गया। उस पत्थर पर मिट्टी ढककर वह घर चला आया। उसने प्रात:काल खेत में आकर देखा कि जिस काले पत्थर को वह मिट्टी में दबाकर गया था वह फिर से स्वत: ही ऊपर आ गया है। चमत्कार के कारण उस किसान ने वह खेत शिव मंदिर के लिए दान करने की पेशकश की। कहते हैं उसी रात देवबंद के एक शिवभक्त व्यापारी को स्वप्न में स्वयं भगवान शिव ने अपने प्रकट होने की बात कहकर वहां मंदिर बनवाने की प्रेरणा दी। इसी आधार पर वहां हिंदू व मुसलमानों ने अपनी सहमति जताकर मंदिर का निर्माण कराया।

बताया जाता है कि भगवान शिव ने मंथन के दौरान मानकी गांव में आसन लगाने के उपरांत नीलकंठ महादेव मंदिर पर आसन लगाया था। बताया जाता है कि इस धरा पवित्र से स्वयंभू ज्योर्तिलिंग प्रकट हुए हैं और आपसी सौहार्द बढ़ाने के लिए करीब 36 वर्ष पूर्व गांव के प्रधान अल्लादिया ने मंदिर को तीन बीघा भूमि जमीन दान दी थी। श्रावण मास की शिवरात्रि पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं और बड़ी संख्या में कांवड़ियों ने भगवान आशुतोष का जलाभिषेक कर अपनी-अपनी मनौती मांगते है। शुक्रवार को भी शिवरात्रि के मौके पर हजारों की संख्या श्रद्धालु और बड़ी संख्या में कांवड़िए भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करने के लिए यहां पहुंचेंगे।

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