पहले चरण में हुए सुस्त मतदान ने बढ़ाई भाजपा की चिंता

गौरव सिंघल, सहारनपुर। 2019 के मुकाबले अबकी लोकसभा चुनाव के पहले चरण की आठ सीटों पर छह फीसद कम वोट पड़ने से सियासी दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं। सबसे ज्यादा चिंता भाजपा के चुनाव प्रबंधकों में सामने आ रही है। भाजपा के रणनीतिकार राजपूतों की नाराजगी को भी एक वजह मान रहे हैं लेकिन मंथन में जो तीन प्रमुख बिंदु उभरकर सामने आए हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बावजूद भाजपा का कार्यकर्त्ता मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक आखिर क्यों नहीं ले जा पाया। इस बार भाजपा के रणनीतिकार मतदान प्रतिशत बढ़ाने पर ज्यादा जोर दे रहे थे। प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश की अपनी पहली मेरठ और दूसरी सहारनपुर की चुनावी सभाओं में मतदान प्रतिशत बढ़ाने पर बहुत जोर दिया था। लेकिन पहले चरण के चुनाव में सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना सुरक्षित, रामपुर मनिहारान, मुरादाबाद और पीलीभीत पर 2019 के चुनाव में सभी जगह करीब छह फीसद कम वोट पड़े।

2014 और 2019 के चुनावों के विपरीत अबकी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मतदाता ना तो हिंदुत्व और ना ही राष्ट्रवाद की लहर पर सवार था। जिसकी भरपूर कोशिश नरेंद्र मोदी, अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर रहे थे। जातीय गोलबंदी ने भाजपा के प्रबंधकों को उलझा दिया। आखिरी वक्त तक भाजपा के रणनीतिकार जातिवाद की काट नहीं कर सके। यह सवाल सबसे ज्यादा सिरदर्द पैदा कर रहा है कि लोकसभा के पिछले दो चुनावों और उत्तर प्रदेश विधानसभा के दोनों चुनावों में कार्यकर्त्ताओं में जो जोश दिखता था वह पहले चरण में क्यों सिरे से गायब रहा।
पुलिस और प्रशासन का रवैया भी पिछले सभी चुनावों से बिल्कुल अलग था। इस बदलाव ने भाजपा को हैरान कर दिया। पहले नंबर की सीट सहारनपुर पर अबकी 66.65 फीसद वोट पड़े और 2019 में इसी सीट पर 70.87 फीसद वोट पड़े थे। कैराना सीट पर 61.17 फीसद वोट पड़े पिछले चुनावों में 67.45 फीसद वोट पड़े थे। मुजफ्फरनगर सीट पर जहां भाजपा के उम्मीदवार केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव बालियान हैं वहां केवल 60.02 फीसद वोट पड़े जबकि 2019 के चुनावों में वहां 68.42 फीसद मतदान हुआ था। 8 फीसद की गिरावट भाजपा खेमे में बैचेनी पैदा किए हुए है। संजीव बालियान पिछले चुनाव में किसी तरह से अजीत सिंह को हराने में सफल हो गए थे जबकि इस बार अजीत सिंह से बहुत हल्के हरेंद्र मलिक के सामने उनके पसीने छूट गए। बिजनौर सीट पर भी मतदान में 8 फीसद की बड़ी गिरावट रही। इस सीट पर भाजपा के समर्थन से रालोद उम्मीदवार चंदन चौहान मैदान में रहे जिन्हें सपा-बसपा उम्मीदवारों के बीच मतों के बंटवारे का लाभ मिलता दिखा। शायद उसी आधार पर चंदन चौहान अन्य सीटों की उम्मीदवारों की अपेक्षा जीत के प्रति आश्वास्त हैं। रामपुर सीट पर अबकी 55.75 फीसद ही वोट पड़ पाए जबकि 2019 में 63.19 फीसद वोट पड़े थे। मुस्लिम बहुल मुरादाबाद सीट पर भी मतदान 5 फीसद गिरा। मुरादाबाद में 60.05 फीसद वोट पड़े। पिछले चुनाव में 65.46 फीसद वोट पड़े थे। इस बार और पिछले बार के चुनावों में बड़ा बदलाव यह था कि कांग्रेस-सपा-बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने में बेहद सतर्कता बरती। कैराना सीट पर सपा-कांग्रेस उम्मीदवार इकरा हसन अकेली मुस्लिम उम्मीदवार थी। वहां मुस्लिम वोटों में सेंधमारी करने वाला कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं था। बसपा ने यहां जानबूझकर और राजपूतों की नाराजगी का फायदा उठाने की गरज से राजपूत श्रीपाल सिंह राणा को उम्मीदवार बनाया था। मुजफ्फनरगर सीट पर किसी भी प्रमुख दल का उम्मीदवार मैदान में नहीं था। सपा के कांग्रेस समर्थित जाट उम्मीदवार हरेंद्र मलिक को चार लाख मुस्लिम मतों का बड़ा सहारा मिला।
बिजनौर सीट पर भी मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में नहीं था। यह अलग बात है कि वहां गैर भाजपाई मतों के बीच सपा और बसपा में बंटवारा हो गया। मुरादाबाद सीट पर भी अखिलेश यादव ने सोच समझकर अपने मुस्लिम सांसद डा. एसटी हसन के बजाए बनिया बिरादरी की रूचि वीरा को उम्मीदवार बनाया। वहां भी मुस्लिम वोटों में बंटवारा नहीं हो पाया। हालांकि बसपा ने वहां जरूर मुस्लिम सैफी बिरादरी का उम्मीदवार खड़ा किया था।
इस तरह से पहले चरण के मतदान को लेकर भाजपा के बजाए विपक्षी खेमा यानि इंडिया गठबंधन अपनी जीत के दावे कर रहा है। भाजपा अभी मजबूती के साथ जीत का दावा करने के लिए सामने नहीं आ पाई है। भाजपा के एक बड़े नेता ने बताया कि भाजपा कार्यकर्त्ताओं में मायूसी की एक वजह यह भी सामने आई है कि मतदान के पहले दिन तक विपक्षी दलों के नेताओं को भारतीय जनता पार्टी में शामिल किया जाता रहा। उससे चुनाव में फायदा तो नहीं हुआ लेकिन कार्यकर्त्ताओं में निराशा जरूर घर कर गई। भाजपा के चुनाव रणनीतिकारों की बात माने तो भाजपा आलाकमान अगले चरण में 26 अप्रैल को होने वाले चुनाव को लेकर बेहद गंभीर है और पार्टी नेतृत्व बदली हुई रणनीति पर काम कर रहा है। राजनीतिक समीक्षकों की निगाहें अब अगले चरण के मतदान पर टिक गई हैं। उसके रूझान से देश के चुनावी माहौल का थोड़ा-बहुत अंदाजा हो जाएगा।

Comments