मां जो कहती थी

हितेन्द्र शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

मेरी माँ को गुजरे आज (चैत्र माह, शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि) को 11 साल हो गए हैं, लगता है जैसे उनकी मृत्यु कल ही हुई हो, लेकिन उनका स्नेह और आशीर्वाद सदैव मेरे साथ है। वास्तव में माता-पिता के दिए संस्कारों से ही हमारा जीवन संवरता हैं, मां के चरणों में समर्पित मेरी पक्तियां...

मां जो कहती थी, सदा सच कहती थी
अपनों से भी दुख पर सदा चुप रहती थी
ज़माने की उपेक्षा या अपनों से तिरस्कार
चेहरे पर मुस्कान लिए चुपचाप सहती थी
मां जो कहती थी, सदा सच कहती थी।

दुनिया बहुत बुरी है, बहुत बुरे हैं लोग
तुम अच्छा ही बनना सबका भला करना
पीड़ा के सागर में, मोती ढूढ़ लाती थी
मां जो कहती थी सदा सच कहती थी।

अन्तर्मन के भावों को, कैसे पढ़ लेती थी
संकट में नये मार्ग हर बार गढ़ लेती थी
मां गंगा थी नदी सी, झर झर बहती थी
मां जो कहती थी सदा सच कहती थी।

परम्पराओं के पतझड़ को सदा समेटती थी
सूखे पौधों को भी हरा करना जानती थी
मां सुगन्ध हरियाली की उम्मीद जगाती थी
मां जो कहती थी सदा सच कहती थी।

घर की दीवारों पर सभ्यताओं के चित्र
संस्कृतियों का द्वार भावनाओं से सजाती थी
मकान को घर, घर को मन्दिर बनाती थी
मां जो कहती थी सदा सच कहती थी।

सम्बन्धों का ताना बाना प्यार से सिखाती थी
अपनेपन का भाव हृदय में दुलार से जगाती थी
रिश्तों की गहराई में जीवन सरल बनाती थी
मां जो कहती थी सदा सच कहती थी।

चेहरे की झुर्रियों में घाव छुपा लेती थी
दर्द के आंसुओं को पसीना बता देती थी
अन्तस् की पीड़ा में भी मुस्करा देती थी
मां जो कहती थी सदा सच कहती थी।
कुमारसैन, (शिमला) हिमाचल प्रदेश
Comments