होली के दिन टेसू के फूलों को इस्तेमाल करने का आहवान किया

शि.वा.ब्यूरो, देवबंद। प्रमुख पर्यावरण प्रेमी गौरव सिंघल का कहना है कि एक समय था जब होली खेलने के लिए टेसू के फूल से बने रंग और गुलाल बाजारों में मिलते थे। यह रंग औषधि के समान थे। होली के दिन टेसू के फूलों को पानी में भिगोकर उसके पानी से नहाने की परंपरा थी। वर्तमान में यह परंपरा कम दिखाई देती है। फाल्गुन माह में टेसू के फूलों का महत्व बढ़ जाता है। यह फूल त्वचा रोग के लिए औषधि तुल्य माने गए हैं। मान्यता है कि होली के बाद चिकिनपाक्स और अन्य त्वचा रोग फैलते हैं। होलिका दहन के दिन रात को घरों में टेसू के फूल बड़े बर्तन में पानी में भिगो दिए जाते थे। परिवार के बड़े-बूढ़े बच्चे रंगों से होली खेलने के बाद घरों पर पहुंचते थे तो टेसू के पानी से नहाते थे, लेकिन आधुनिक युग में टेसू के फूल का महत्व भले ही कम न हुआ हो, लेकिन इसका उपयोग कम हो गया है। इससे बने रंग और गुलाल अब बाजारों में नहीं मिलतें। इसका स्थान रसायनिक रंगों ने ले लिया है। देवबंद के पर्यावरण प्रेमी गौरव सिंघल ने देश के लोगो से होली के दिन टेसू के फूलों का फिर से इस्तेमाल करने की अपील की है।

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