आखिर किसके होंगे जयंत चौधरी

गौरव सिंघल, सहारनपुर। 2024 का लोकसभा चुनाव सिर पर है। अस्सी सीटों वाले उत्तर प्रदेश की सरकार बनने में अहम भूमिका रहती है। भारतीय जनता पार्टी ने पिछले चुनाव 2019 में 62 सीटें जीती थीं। दो सीटें उसके सहयोगी दल अपना दल को मिली थी। तब सपा-बसपा और रालोद गठबंधन ने राजग को तगड़ी चुनौती दी थी। इस बार विपक्षी दलों ने इंडिया बैनर के तले गठबंधन बनाया है। जिसमें अभी टिकाऊपन नहीं आ पाया है। दूसरी ओर अयोध्या में रामजन्म स्थान पर बने भव्य मंदिर में संघ और भाजपा की भूमिका के कारण हिंदू मतों का रूझान भाजपा की ओर है। जिसका लाभ उसे चुनावों में मिलना तय है। भाजपा के लिए हालात उसके अनुकूल बने हुए हैं। लेकिन भाजपा और एनडीए ने अपनी सीटों का लक्ष्य क्रमशः 370 और 400 के पार रखा है। उसे ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह जमीनी तैयारियों को कुशल और कारगर रणनीति के साथ पूरा करने में लगे हैं। उसी का नतीजा है कि बिहार में नीतिश कुमार की एनडीए में वापसी हुई है। जो उसका पुराना एवं विश्वसनीय सहयोगी रहा है।

42 सीटों वाले पश्चिमी बंगाल प्रांत की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। कमोबेस यही स्थिति दूसरे क्षेत्रीय दलों और जातीय समूहों की भी बनी हुई है। उत्तर प्रदेश में भाजपा खेमे में अभी जो क्षेत्रीय दल शामिल हैं उनमें केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल की अध्यक्षता वाला अपना दल (सोनेलाल) शामिल हैं जिसका प्रभाव पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुर्मी समुदाय पर है। ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और एक अन्य दल निसाद पार्टी भी इसी खेमे में है। अनुप्रिया पटेल के दो सांसद हैं और इतनी ही सीटें उसे इस बार मिलने वाली हैं। जबकि उनकी मांग पांच सीटों की है। ओमप्रकाश राजभर तीन सीटें मांग रहे हैं। सुभासपा के उत्तर प्रदेश में छह, अपना दल के तेरह, निसाद पार्टी के छह विधायक हैं। राजग में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों पर प्रभाव रखने वाले क्षेत्रीय दल रालोद के भी शामिल होने की प्रबल संभावना है। रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी सुलझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। उनके बाबा चौधरी चरण सिंह किसानों के बड़े नेता थे। जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री रहे हैं। जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजीत सिंह भी किसानों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सम्मानित नेता रहे हैं। रालोद ने 2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन किया था। तब चौधरी अजीत सिंह बागपत, जयंत चौधरी मथुरा, संजय चौहान बिजनौर से जीते थे। हाथरस सुरक्षित और अमरोहा सीट भी रालोद ने ही जीती थी। यानि रालोद को भाजपा के गठबंधन में तब भारी राजनीतिक लाभ मिला था। केंद्र में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए सरकार में अजीत सिंह शामिल हो गए थे। उसके बाद के हुए दोनों चुनावों में यानि 2014 और 2019 में रालोद अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। पिछले चुनावों में पिता-पुत्र की पराजय किसानों और उनकी अपनी बिरादरी जाटों को बहुत अखरी थी। सियासी माहौल के जानकार जयंत चौधरी को अखिलेश यादव ने सात सीटें दी हैं लेकिन प्रदेश के ताजे माहौल को देखते हुए रालोद किसी भी सीट पर जीत दर्ज कर सकता है इसकी दूर-दूर तक संभावना नजर नहीं आती है।

भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनावों में सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, नगीना, अमरोहा, संभल सीटें हारी थी।2022 के विधानसभा चुनावों में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-रालोद गठबंधन ने आशातीत सफलता पाई थी। इसलिए भाजपा अबकी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है और विनम्रता और शालीनता दिखाते हुए जयंत चौधरी को अपने पक्ष में लाने को प्रयासरत है। भाजपा के जयंत के साथ शीर्ष वार्ताकारों ने बातचीत की है। इन पंक्तियों के लेखक को मिली जानकारी के अनुसार रालोद को भाजपा बिजनौर और बागपत लोकसभा सीटें दे रही है। उनको राज्यसभा की एक सीट भी दी जा सकती है। जयंत चौधरी को केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है और उत्तर प्रदेश सरकार में भी उनको दो मंत्रीपद दिए जा सकते हैं। जैसे पिछले चुनावों में अपना दल ने मिली मिर्जापुर और प्रतापगढ़ दोनों सीटें जीत ली थी। इसी तरह माना जा रहा है कि रालोद भी मिलने वाली दोनों सीटों पर जीत दर्ज करेगा। रालोद-भाजपा गठबंधन होने का अधिकृत ऐलान दो-तीन दिन के भीतर हो जाने की उम्मीद है। गठबंधन की खबरें मीडिया में लीक हो जाने से जयंत चौधरी पर विपक्षी दलों का जबरदस्त दबाव बन गया है। अखिलेश यादव, राहुल गांधी, सोनिया गांधी, भावी बड़े नेता जयंत चौधरी को अपने पाले में बनाए रखने को गंभीर प्रयास कर रहे हैं। जयंत चौधरी अभी विपक्षी नेताओं के हाथ नहीं लग रहे हैं और उनके फोन भी नहीं रिसीव कर रहे हैं। 

जानकारी के मुताबिक जयंत चौधरी को अमित शाह पर ज्यादा भरोसा है। इन पंक्तियों के लेखक ने आरएलडी के विधायकों की राय जानी तो सभी जयंत चौधरी के साथ मजबूती से खड़े हैं और वह आश्वस्त हैं कि चौधरी साहब सही निर्णय लेंगे। रालोद विधानमंडल दल बिना किसी हिचक और मतभेद के जयंत चौधरी के साथ उसी गठबंधन में जाने को तैयार है जिसका फैसला जयंत चौधरी करने वाले हैं। जबकि विपक्षी इंडिया खेमे में बेचैनी और हताशा का माहौल है। अखिलेश यादव, उनकी पत्नी डिंपल यादव और अन्य विपक्षी हितों वाले नेता जयंत चौधरी के प्रति अत्यंत आदर और सम्मान का भाव प्रदर्शित कर उन्हें इंडिया गठबंधन में ही बने रहने के लिए मनाने में लगे हुए हैं। जाट बिरादरी के मिजाज और चौधरी चरण सिह एवं चौधरी अजीत सिंह की सियासत को नजदीक से देखने और समझने वालों का दो टूक कहना और मानना है कि जब कभी भी चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजीत सिंह ने अपने हितों को ध्यान में रखकर बड़े फैसले किए हैं तो फिर वे उनसे किसी भी तरह से डिगे नहीं। इसी तरह जयंत चौधरी की भाजपा के साथ जाने को लेकर जो बातें सामने आई हैं। उसमें नहीं लगता कि जयंत चौधरी वापस अपने पैर इंडिया गठबंधन में खींचेंगे। भाजपा के साथ जाने में सभी का हित सुरक्षित रहेगा। यही वह बिंदु है जिससे हम मान सकते हैं कि जयंत चौधरी भाजपा के साथ जाएंगे और उसी की अगुवाई में चुनाव में उतरेंगे। यदि ऐसा होता है तो इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विकास के नए द्वार खुलेंगे और यहां की सामाजिक संरचना को मजबूती मिलेगी।

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