तोतली भतिजी ( लघुकथा)

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
एक मारवाड़ी कहावत है कि तोतली की ततपत बारह मुट्ठी एक लफ, यानि उसकी तोतली भाषा निश्चित रूप से बचपन में मनमोहक एवं प्रिय जरूर होती है लेकिन उसका अर्थ झट से समझ में नहीं आता। यह हाल रेणू का था। चाचा ताऊ के एक दर्जन बच्चों में तोतली भतिजी को भी स्कूल में भर्ती जरूर करा दिया फिर भी उसकी अवहेलना स्कूल में भी, होती वहीं घर में भी। चमत्कार तब हुआ जब स्कूल की पांचवी कक्षा में सर्वाधिक अंक लाकर सबको चौंका दिया। भंतो भूवा आयी तो बहुत खुश होकर गुङ की सुआली की एक बाटी भरकर खिलाने लगी। 
    संगीत में देश भक्ति एवं भगवान् के भजन गाना सीखने से तोतली भजन संध्या होने लगी। जब वो मीरा बनकर भजन सुनाती तो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती लेकिन सिरफिरे लोग तोतली भाषा पर जमकर व्यंग्य करते।     तोतली की शादी की तैयारी चलने लगी तो दादी परेशान थी कि ससुराल में इसका कितना मान सम्मान होगा फिर भी शादी धूमधाम से हो गई। ससुराल में धीरे धीरे तोतली बहू तोतली भाभी तोतली चाची एवं अब तोतली ताई बन गयी लेकिन सबका ध्यान सम्मान एवं सेवा से सबकी चहेती बन गयी। 
    जब रेणु की ससुराल में उनके चाचा आदराम विधायक बन कर आये तो जनता को संबोधित करते हुए कहा कि बहनों एवं भाईयों तथा मेरी लाडली रेणु तोतली भतिजी आप सभी को राम राम। तोतली ताई को मंच पर बुलाया गया तो तोतली बोली ताता लाम लाम ( चाचा राम राम) कहकर देश भक्ति का गीत सुनाकर लोगों को तालियां बजाने के लिए मजबूर कर दिया। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

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