सन्यासी परिवार ( लघुकथा)
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
विदेशी आयात निर्यात करने वाले धर्म नारायण कर्म नारायण के चार जहाज समंदर में डूब गए, किसी का भी बीमा नहीं था। आकर  सरकारी कर्मचारी ने खबर दी तो कर्म नारायण का उसी समय हर्ट अटेक हो गया, सब इतने विचलित हुए कि सबने खटिया पकड़ ली। भाई की मौत से धर्म नारायण घबरा गया। लखपति से सङक पर परिवार आ गया। उनके मनेजर ऋषि लाल सहित चार ओर लोगों के परिवारों को आर्थिक मदद देकर कहा कि जहाज के साथ ही सब खत्म वो नहीं हमारा परिवार भी हो गया। इधर-उधर से पांच-सात हजार रुपये जुगाड़ करके रातों रात घर दुकान बंद करके 21 लोगों ने पलायन कर लिया। दुसरा कोई उपाय नहीं था, क्योंकि जैसे ही खबर मिलेगी। लोग तकादा करेंगे इससे अच्छा है कि तब तक इतनी दूर चले जाए कि यह काली छाया पीछा ना करें। 
नेपाल सीमा पर जाकर एक मंदिर में बैठ कर सन्यासी बाबा को दास्तान सुनाई तो बोले धर्म नारायण कल सोमावती अमावस्या है, सुबह नहा-धोकर सभी सन्यास ले लो। जो भी गहने वस्त्र एवं नगदी है, सब हमारे मंदिर में जमा करवा दो। बहुत बङा प्रतिष्ठित मंदिर है। महिलाओं को भोजन बनाने में लगादो बाकी धीरे-धीरे ड्यूटी करने से सेवा के प्रताप से तुम सुरक्षित भी रहोगे, वही लौकिक ऋण से मोहमाया छुटने से पश्चाताप के बाद पाप से मुक्त हो जाओगे। सारा परिवार सन्यासी परिवार बन गया। दिनरात सेवा करने एवं नियमानुसार मंदिर चलाने से धर्म नारायण भी सन्यासी बाबा के नाम से मशहूर हो गये। 
ऋषि लाल एक दिन चारों कर्मचारियों के साथ सकुशल लौटकर बाइस लाख रुपये लेकर लौटा तो सब हैरान थे। पुलिस आयी तो ऋषि लाल ने बताया कि लूटेरो ने चारों जहाज लूट लिया तथा हमें बंदी बनाकर ले गए, लेकिन जब वो अज्ञात स्थान पर ले गए तो हम पुलिस की सहायता से छुट गए। सारे कच्चे बीज बेचकर वहाँ का टेक्स देकर बाकी रुपये लाये है तो पुलिस ने कहा कि जब तक हम उन लोगों को ढूंढ नहीं लेते आप कारोबार चलाओ। ऋषि लाल गुप्त रूप से उस मंदिर में पहुँच गया तो धर्म नारायण ने साफ मना कर दिया कि अब यह संन्यासी परिवार दोबारा नहीं आयेगा लोगों के पैसे लौटा कर तुम मालिक बन कर कारोबार करो‌। ऋषि लाल आकर वैसे ही किया तथा नया बोर्ड लटका दिया, सन्यासी परिवार......
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
Comments