विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर असम विश्वविद्यालय में कवि गोष्ठी आयोजित

मदन सिंघल, शिलचर। विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर असम विश्वविद्यालय के राष्ट्रभाषा प्रकोष्ठ द्वारा एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। संस्कृत विभाग के छात्र सुप्रिया चौबे द्वारा वैदिक मंत्रों का पाठ किया गया,  तत्पश्चात प्रदर्शन कला विभाग के छात्रों ने स्वागत गीत के माध्यम से अतिथियों का स्वागत किया। अपने संबोधन में कुलपति ने राष्ट्रभाषा प्रकोष्ठ की सलाहना की और कहा कि ऐसे आयोजन और भी होते रहें, जिससे राजभाषा का विकास होता रहे। उन्होंने कहा की शनिवार या रविवार अथवा छुट्टी के दिन इस तरह के आयोजन किए जाने चाहिए, जिससे कि कार्यों के दबाव से मुक्त होकर सभी कवियों को ध्यानपूर्वक सुना जा सके। कवि गोष्ठी का संचालन कवयित्री हीरा अग्रवाल द्वारा किया गया। 

साधना टीवी के सह निर्मात्री और विश्व स्तर पर कई पुरस्कारों की विजेता कवयित्री सुषमा पारख ने आधुनिक स्त्री से इतर स्त्री की वास्तविक छवि को प्रस्तुत किया -

'बना दे आशिया जन्नत है ताकत ओ नारी में।
दर्द अपनों का सहकर बने मरहम बीमारी में। 
कष्टों की तपती दोपहरी में न घबराना। 
भोर की स्वर्णिम लाली सा है प्रकाश नारी में।'
श्री जय प्रकाश ग्वाला ने राष्ट्र भक्ति से प्रेरित अपनी कविताओं का काव्य पाठ किया-
'इस तिरंगे को कपड़े का टुकड़ा न समझना।
मेरे मां की आंचल इसे हल्के में ना लेना।
तिरंगे में तीन रंग को ना रंग समझना।
यह त्याग बलिदान और शांति का प्रतीक है।
यह बीच में जो चक्र है ना चक्र समझना।
यह याद सब करता है यह कालचक्र है।'
युवा कवि चंद्र कुमार ग्वाला ने युवा दिवस को ध्यान में रखते हुए कविता की ये पंक्तियां लयबद्ध रूप में पढ़ी -  'तन में बल और तेज भरा हो मन में हो उमंग सदा। 
अंतकरण हो सागर जैसा लहरें कोटि तरंग सदा।।'
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी कवयित्री मधु पारख ने प्रेम पर काव्य पाठ करते हुए समा बांधा दिया - 
''नहीं वो प्रेम कहलाता,  जहाॅं  बस स्वार्थ है रहता।
करे जो लाभ से बातें,  गरज की बात ही  कहता।।
नहीं समझो इसे सस्ता,  कहाॅं  यूं  प्रेम मिलता है।
जहाॅं सत भावना गहरी,  वहीं ये  प्रेम है  बहता।।''
इस कवि सम्मेलन का दायित्व निभा रहीं कवयित्री हीरा जयसवाल ने भी श्री राम जन्मभूमि स्थापना के संदर्भ में जन-जन में उल्लास पर अपनी कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। सुरेन्द्र कुमार उपाध्याय ने शेर के माध्यम से अपनी बात इस प्रकार कही - 
''कल की याद बेख़ौफ़ दिलों में बैठे हैं,
कुछ मुरझाए फूल खुशबू छितराए  बैठे हैं,
हमदर्दी की कांटों से वे मुझे जगाते, 
मैं चंचल पलकों से आंसू राह गिराए बैठे हैं।
इस अवसर पर दैनिक पूर्वोदय के संवाददाता और कवि योगेश दुबे ने भी काव्य पाठ किया। उनकी कविताओं में किसानों की दैनिक स्थिति का सजीव वर्णन देखने को मिला। सर्वेश सोनोकार ने भी सामाजिक चेतना से ओतप्रोत काव्य पाठ किया। पृथ्वीराज राज ग्वाला ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। संतोष ग्वाला ने कार्यक्रम व्यवस्थापन का कार्य किया।
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