गुप्त विवाह ( लघुकथा)
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
छेदीलाल ६३ साल के हो गये इतने कंजुस थे कि अपनी बिमार पत्नी का इलाज भी घरेलू नुस्खे से करते, जबकि सरकारी अस्पतालों में टीबी रोग का इलाज मुफ्त होता था। एक दिन दमयन्ती की बङी बहिन मिलने आयी तो बोली- जीजाजी! आप करोड़ पति है, कोई कमी नहीं तो दमयन्ती की बिमारी का इलाज जयपुर दिल्ली बंगलोर में क्यों नहीं करवाते? इतना धन किस काम के लिए इकट्ठा करके रखा है।     
छेदीलाल बोला कि मेरे लिए तो यह तभी से मर गयी, जब पता चला कि इसको टीबी है। इसको अपने कर्मों की सजा मिलने दो। हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते, फिर पैसे की बर्बादी क्यों की जाए। धनवंती बोली तो मेरे साथ भेज दिजिए मैं सेवा करूंगी इलाज करवाउंगी। छेदीलाल बोला- ले जाओ, लेकिन इस घर का दानापानी खत्म हो जायेगा। धनवंती ले गयी एक दिन खबर मिली कि वास्तव में दमयन्ती ठीक होकर आ गयी, लेकिन छेदीलाल ने अपनाने से मना कर दिया। मन मारकर वापस चली गई। बेटे-बहू हाथ जोड़ रहे थे, लेकिन छेदीलाल साफ कर दिया। 
धनवंती ने दमयन्ती की मृत्यु की खबर भेजी, लेकिन कोई नहीं गया। अचानक एक दिन लाजवंती नामक अधेड़ उम्र की औरत की लाश आयी तो छेदीलाल ने स्वीकार किया कि दमयन्ती बीस साल बिमार रही तो धनवंती के साथ मैंने गुप्त विवाह किया। आज मैं मृत धनवंती की मांग में सिंदूर भरकर इसे सम्मानित करने के साथ सभी परंपरा निभाउंगा। सब आश्चर्य चकित थे। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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