रंगरेज ( लघुकथा)

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हरिश्चन्द्र की पांचवी बहिन की शादी फुलेरिया दूज को थी किसी तरह निमंत्रण एवं अन्य काम तो अपनी हेसियत के अनुसार निपटा लिए लेकिन गाँव में शादियां अधिक होने के कारण ना तो रहने बारात को ठहराने एवं आशीयाना तैयार करने के लिए जगह नहीं मिल रही थी उस समय टेंट हाउस नहीं होते थे तो हरिश्चन्द्र मारा मारा फिर रहता था। 
सेठ मेवा लाल की दुकान पर कोई समान लेने गया तो सेठजी ने उदासी का कारण पुछा तो हरिश्चन्द्र ने दुखङा सुनाया तो मेवा लाल ने कहा कि मेरे ताउजी की हवेली बंद पङी है उसमें बङे बङे गद्दे लगे हैं साफ सफाई करके तैयार करवा लो नये कंबल मैं दे दूंगा लेकिन ध्यान रहे कि गंदे ना हो। हरिश्चन्द्र खुश हो गया। वही बैठा रमजान रंगरेज बोला हरी चिंता मत करो मैं रंगबिरंगी साङियों से आलीशान आशीयाना बना दूंगा। 
जब बारात लौट गयी तो हरिश्चन्द्र ने रमजान रंगरेज को किराया लेने अथवा कुछ रूपये लेने की पेशकश की तो रमजान बिफर पङा कि हम दोनों साथ साथ पढ़े दोनों दोस्त है तो बहिन की शादी में क्या मैं व्यापार करूँगा। रमजान के जवाब से सब नतमस्तक थे। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

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