भिखारिन ( लघुकथा)
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
शोभा भिखारिन रोजाना जगह जगह मंदिरों में सफाई करती शाम को एक रंगी साङी पहन कर कंधे पर झोला टांगे आने जाने वाले भक्तों को बताशा बांटती थी। ना तो किसी से भीख मांगती ना ही कोई स्वैच्छा से कुछ देता था लेकिन शोभा भिखारिन के नाम से मशहूर हो गई। वो कहाँ रहती है कहाँ खाती है रोजाना बताशे बांटती है तो पैसे कहाँ से लाती है। लोगों को जहाँ आश्चर्य था वही कोई जासूस होने का शक। एक दिन पुलिस में खबर दी गई तो पुलिस ने जांच शुरू कर दी। लगातार निगरानी करने पर एक दिन किराये का घर देख लिया। जरूरत का समान एवं राशन था। पुलिस ने तलाशी ली तो शोभा चंदावत के नाम से घर का पता मिला दो एटीएम मिले पेन कार्ड एवं आधार कार्ड। 
     पुलिस ने थाने में पुछताछ के लिए बुलाया तो शोभा चंदावत ने बताया कि हालांकि मैं संपन्न घराने से हुं लेकिन मैं जगह जगह तीर्थाटन करने के बाद विभिन्न राज्यों में ऐसे ही धार्मिक स्थलों में सेवा करती हूँ। छह महीने बाद अपने परिवार से मिलने चली जाती हूँ लेकिन बेटे बहू व्यस्त रहने के कारण मैं अकेली पङ जाती हूँ इसलिए मैंने देव दर्शन एवं सेवा के लिए यही रास्ता चुना। जब पुलिस ने उनके बेटे से संपर्क किया तो सत्यता की पुष्टि की तथा बताया कि जब भी इनके खाते में रुपये कम हो जाए तो हम पर्याप्त राशि जमा दे कर कोई भी असुविधा नहीं होने देते। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर असम
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