शिवपुराण से....... (407) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता, द्वितीय (सती) खण्ड

प्रमथगणों सहित वीरभद्र और महाकाली का दक्ष यज्ञ विध्वंश के लिए प्रस्थान, दक्ष तथा देवताओं को अपशकुन एवं उत्पादसूचक लक्षणों का दर्शन एवं भय होना 

गतांक से आगे........ भगवान् शिव ने केवल शोभा के लिए उनके साथ करोड़ों महावीर गणों को भेज दिया, जो प्रलययाग्नि के समान तेजस्वी थे। वे कौतूहलकारी प्रबल वीर प्रमथगण वीरभद्र के आगे और पीछेे भी चल रहे थे। काल के भी काल भगवान् रूद्र क वीरभद्र सहित जो लाखों पार्षदगण थे, उन सबका स्वरूप रूद्र्र के ही समान था। उन गणों के साथ महात्मा वीरभद्र भगवान् शिव के समान ही वेष-भूषा धारण किये रथ पर बैठकर यात्रा कर रहे थे। उनके एक सहस्र भुजाएं थीं। शरीर पर नागराज लिपटे हुए थे। वीरभद्र बड़े प्रबल और भयंकर दिखायी देते थे। उनका रथ बहुत ही विशाल था। उसमें दस हजार सिंह जोते जाते थे, जो प्रयत्नपूर्वक उस रथ को खींचते थेे। उसी प्रकार बहुत से प्रबल सिंह, शार्दूल, मगर, मत्स्य और सहस्रो हाथी उस रथ के पाश्र्वभाग की रक्षा करते थे। काली, कात्यायनी, ईशानी, चामुण्डा, मुण्डमर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, त्वरिता तथा वैष्णवी- इन नवदुर्गाओं के साथ तथा समस्त भूतगणों के साथ महाकाली दक्ष का विनाश करने के लिए चलीं। डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रमथ, गुह्मक, कूष्माण्ड, पर्पट, चटक, ब्रह्मराक्षस, भैरव तथा क्षेत्रपाल आदि- ये सभी वीर भगवान् शिव की आज्ञा का पालन करने एवं दक्ष के यज्ञ का विनाश करने के लिए तुरंत चल दिये। इनके सिवा चैंसठ गणों के साथ योगिनियों का मण्डल भी सहसा कुपित हो दक्ष यज्ञ का विनाश करने के लिए वहां से प्रस्थित हुआ।

                                                                                                             (शेष आगामी अंक में)

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