खुदगर्जी

राजीव डोगरा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
गिर रही है न
ये जो आसमा से तड़फती बूंदे
मज़ा लेते हो
तो कभी ये डुबकर
तुम्हारे अस्तित्व को मज़ा लेती है।
कभी खुद बहती है
अपनी ही मस्ती में
तो कभी तूफ़ान बन
तुम को बहा
ले जाती है समुंदर में।
जो ये पर्वत
कभी तुम इनका
आरोहण  करते हो
तो कभी ये दबा देते हैं
तुम्हारी जिद्दी शख्सियत को।
कभी तुम इनसे
बह रही है न ये नदियाँ
बर्फ से ढके है न
राजकीय उत्कृष्ट वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय गाहलिया (कांगड़ा) हिमाचल प्रदेश

Post a Comment

Previous Post Next Post