जिसे खोज रहा
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जिसे खोज रहा जग वन-वन में ।
वह ईश्वर तो बसता है पावन मन में ।।
मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे में मनुज दौड़ लगाता है ।
पूजन, अर्चन, यज्ञ -हवन, मत्थाटेक, नमाज से मन भरमाता है ।।
सैर- सपाटे को तीर्थाटन कहता फिरता है ।
कर -कर आडंबर स्वयं को धोखा देता है ।।
कभी की नहीं दीन-हीन, भूखे- रोगी की सेवा ।
पाप कमाई से करके भंडारे, पाना चाहे ईश्वर मेवा ।।
छोड़ी न चोरी, बेईमानी फिर कथा -भागवत क्या लाभ देंगी ।
सताओगे कमजोरों-लाचारों, निबलों -बिकलों को तो बद्दुआएं ही मिलेंगी।।
जान लो, मान लो प्रकृति से बड़ा कोई न्यायकारी नहीं है ।
प्रकृति व उसके नियमों से छेड़खानी मनुज तेरे लिए सही नहीं है।।
ईश्वर निराकार -साकार जैसा मान सके तू मान।
कण -कण में बसा दया की मूरत ईश्वर, मनुज तू जान ।।
जिसे खोज रहा जग वन-वन में ।
वह ईश्वर तो बसता है पावन मन में ।।
गांव रिहावली, डाक घर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश 
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