सती सावित्री चालीसा
डॉ. दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
धन वैभव को त्याग के, पति सेवा विश्वास।
सास ससुर के संग में, काट लिया वनवास।।
महभारत में कथा सुहाई।
मारकंड से पांडव पाई।।1
मद्रदेश में अश्वपति राजा।
सुख संपत्ति सेना साजा।।2
बहुत दिनों तक बिन संताना।
राजा मन ही मन घबराना।।3
गायतरी मां का जप कीना।
समय पाय इक कन्या दीना।।4
जब बेटी दुनिया में आई।
सकल राज से मिली बधाई।।5
प्यारी सुंदर सद् व्यवहारी।
मातु पिता की राज दुलारी।।6
सरस्वती से विद्या पाई।
मां लक्ष्मी का रूप समाई।।7
धीरे धीरे  भइ तरुणाई।
सुंदर वर को खोजन जाई।।8
देश देश में किया पयाना।
भये उदासी मन पछताना।।9
धूमसेन थे शाल्व नरेशा।
आई विपदा साधू भेषा।।10
पति-पत्नी ने आंखें खोई।
राज बिना पूछत नहि कोई।।11
खोया राज्य विपदा भारी।
सत्यवान ही पूत सहारी।।12
ऐसा वर बेटी मन भाये।
खुशी खुशी सब देव मनाये।।13
जब सखियों ने बात बताई।
राजा की आंखें भर आईं।।14
तेहि समय नारद मुनि आये।
पौथी खोली भाग्य बताये।।15
लगन पत्रिका तुरत मिलाई।
अल्पायू वर की बतलाई।।16
सुनकर माता भयी उदासी।
सावित्री का प्रण विश्वासी।।17
मातु पिता ने बहु समझाई।
फिर भी बेटी समझें नाही।18
धूमधाम से ब्याह रचाये।
संगी साथी सभी बुलाये।।19
महल छोड़कर वन में आई।
कुटिया में पति संग बिताई।।20
सास ससुर की सेवा करती।
पति आज्ञा को नहीं विसरती।।21
एक साल तक सभी सुखाई।
काल रात चुपके से आई।।22
काष्ठ हेतु पति पेड़ चढ़ाये।
सूखी लकड़ी काट गिराये।।23
फिर तन में दुर्बलता आई।
आये चक्कर जी मचलाई।।24
छूट कुल्हाड़ी नीचे आई।
पीछे सत्य गिरे दिखाई।।25
सावित्री ने जब यह देखा।
घबराकर के भूली देहा।।26
मन में सुमरे कुल के देवा।
राखो सिंदुर मेरी सेवा।।27
समय पाय मृत्यू नियराई।
काला भैसा यम ले आई।।28
फिर दुर्गा का रूप बनाया।
लिया कुल्हाड़ जग थर्राया।।29
पतिव्रता ने क्रोध दिखाया।
साहस देखा यम घबराया।।30
मौत छोड़ कर तुम वर मांगो।
वर को पाके घर को भागो।।31
सास ससुर को आंखे दीजे।
बेटी यह वर तुरतहिं लीजे।।32
फिर प्राणा ले भैसा आगे।
सावित्री फिर पीछे भागे।।33
दूजा वर भी यम दिलवाई।
खोया राजहि तुरत मिलाई।।34
फिर भैसा को तेज भगाया।
आगे पहुंची सति की माया।।35
तीजा वर भी ऐसा पाऊं।
सौ पुत्रों की मां बन जाऊं।।36
पुत्रवती भव दे वरदाना।
खुशी खुशी सावित्री आना।।37
छोड़ पती यम लोक पयाना।
बट पूजा की कथा बखाना।।38
जेठ अमावस बट की पूजा।
अखंड सुहाग धरम न दूजा।।39
बरगद पीपल एक लगाना।
आक्सीजन का रहे खजाना।।40
बट सावित्री ब्रत करें, बरगद पूजन आन।
सुख संपति को पाइये, कहत हैं कवि मसान।
दरबार कोठी 23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश
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