धरती चालीसा भाग -१
डॉ. दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
धरती सबकी मातु है,सब जग को आधार।
भू संरक्षण कीजिए,कहत हैं कवि विचार।।
जयजय जयजय धरती माता।
तुम हो जग की भाग विधाता।1
भूमि वसुधा पृथ्वी माते।
वसुंधरा महि कह बुलाते।।2
हरियाली है चूनर तेरी।
इच्छा पूरी करती मेरी।।3
सागर चार बड़े हैं भारी।
महाद्वीप छः स्थल धारी।।4
इक बर्फीला द्वीप सुहाता।
सबके मन को वह हरषाता।।5
छोटे द्वीपों लगते प्यारे।।
जैसे नभ में झिलमिल तारे।।6
नद पर्वत की शोभा न्यारी।
जंगल मंगल जग हितकारी।।7
नदियां कलकल पर्वत ऊंचे।
 हरिया वृक्ष है आंखें मीचे।।
शीत घाम को सहने वाली।
तेइस डिग्री झुकने वाली।।8
 खुदी धुरी पे आप घुमाती।
जिससे होते दिन अरु राती।।9
सूरज की परिकम्मा करती।
तीन सौ पैंसठ पूरण भरती।।10
बारह महिना बरस बनाते।
तीन ऋतु पा हम हरषाते।।11
सर्दी  गर्मी  वर्षा  भारी।
बसंत ऋतु है जग हितकारी।। 
अक्ष देशान्तर रेखा सारी।
ज्योतिष विद्या इसे विचारी।।12
मकर कर्क भी लक्ष्य बनाती।
ग्रह नक्षत्र दिशा बतलाती।।13
जलथलअन्न खनिज सब धारी
वन उपवन पौधे उपकारी।।14
धन्य धरा हर धरम निभाती।
नेह दिखाने वर्षा आती।।15
काले मेघ गगन में छाये।
ठंडी हवा में मोर नचाये।।16
खेत खेत फसलें लहराये।
देख किसानों मन हरषाये।।17
उनतिस प्रतिशत थल कहलाता।
प्रति इकहत्तर  में जल आता।।18
सागर नदिया ताल तलाई।
नीर धरा पर जीव भलाई।।19
चंदा मामा करते फेरी।
तीन लाख चौरासी दूरी।।20
दरबार कोठी 23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश
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