कसम है तिरंगे की

डॉ. अवधेश कुमार "अवध", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

हम हिंदू हैं, मुस्लिम हैं, सिख हैं, ईसाई हैं।
हम पंडित हैं, पादरी हैं, काजी हैं, कसाई हैं।
मगर बात हो जब देश के आन-बान-शान की-
कसम है तिरंगे की, हम सारे भाई- भाई हैं।।
हम मंदिर हैं, मस्जिद हैं, गिरजा हैं, गुरुद्वार हैं।
हम काशी हैं, काबा हैं, येरुसलम हैं, दरबार हैं।
नाम  हैं  अलग- अलग, रूप- रंग भी अलग-
हम ईश्वर हैं, अल्ला हैं, गॉड हैं, करतार हैं।।
मगर बात हो जब देश के आन-बान-शान की-
कसम है तिरंगे की, हम सारे भाई- भाई हैं।।
हम तमिल हैं, तेलगू हैं, मराठी हैं, सिंधी हैं।
हम कन्नड़ हैं, उड़िया हैं, खसिया हैं, हिंदी हैं।
एक ही बगीचे के अलग-अगल फूल लेकिन-
हम माता भारती के माथे  पर सजी बिंदी हैं।।
मगर बात हो जब देश के आन-बान-शान की-
कसम है तिरंगे की, हम सारे भाई- भाई हैं।।
साहित्यकार व अभियन्ता मैक्स सीमेंट, ईस्ट जयन्तिया हिल्स मेघालय

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