माँ तो माँ होती है

डॉ. अवधेश कुमार "अवध", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
चुपके से
छुपते-छुपाते
क्या कभी अपनी माँ के पास 
अब जाते हो?
कुछ भी मत छुपाना
तुम्हारी खूबसूरत बीवी
व प्यारे बच्चों की कसम
सच सच बताना
नहीं न
तो आज जाओ
उसके सिरहाने सिमटी तकिया को 
आहिस्ता से पलटो
अपने दोनों हाथों से सम्हालकर उठाओ
ध्यान से देखो
फिर अपने माथे से लगाओ....
कुछ- कुछ या बहुत कुछ होने लगेगा
जितनी तुम्हारे दिल में संवेदना है
उतना ही ज्ञान चक्षु खुलेगा.....
अगर गीलेपन का अहसास हुआ
भींगे होने का आभास हुआ
तो समझ लो कि-
तुमको इस धरती पर लाकर
तुम्हारी माँ ने बहुत बड़ी भूल की है
जिसको वह सुधार तो नहीं सकती
बद्दुवा भी तो नहीं दे सकती
पर, अपनी भूल पर
पल-पल अकेले में रोती है
तकिया को भिंगोती है
क्योंकि माँ तो माँ होती है
माँ तो माँ होती है।
साहित्यकार व अभियंता मैक्स सीमेंट, ईस्ट जयन्तिया हिल्स मेघालय

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