कान खोलकर सुन लो

डॉ. अवधेश कुमार "अवध", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

कान खोलकर सुन लो
हे अंध-संविधान समीक्षकों!
हे तथाकथित कानून रक्षकों!
हे समाज के ठेकेदारों!
है मज़हबी जालसाज़ों!
हे वासना को प्यार कहने वाले कामलोलुपों!
हे पाप को प्यार कहने वाले पापियों!
हे फिल्मी जोकरों!
हे लिव इन रिलेशनशिप के पैरोकारों!
हे सनातनी जीवन पद्धति के विरोधियों, गद्दारों!
आज हम डंके की चोट पर
कह रहे हैं चिल्लाकर
खुलेयाम... आँखें मिलाकर
बिना किसी लाग-लपेट के.....
हमने पैदा किये हैं
बेटी और बेटे 
हमें चिंता है इनकी 
तुम सभी लोगों से ज्यादा....बहुत ज्यादा
जाओ......चले जाओ हमारे बीच से
तुम अपने बच्चों को देखो
हम देख लेंगे अपने बच्चे
हमने इनके अतीत देखे हैं
वर्तमान गढ़ रहे हैं
भविष्य भी सँवारेंगे
सुनो......रुको.....सुन भी लो
यहाँ फैसले न तुम्हारे चलेंगे
न इनके चलेंगे
ये सच्चे होकर भी कच्चे हैं, बच्चे हैं
यहाँ फैसले हमारे चलेंगे
सिर्फ हमारे....
क्योंकि ये तुम्हारे लिए बस गुड्डे हैं, खिलौने हैं....
किंतु हमारी जिंदगी हैं
साँस हैं, धड़कन हैं, आस हैं, विश्वास हैं
हमारे राजदुलारे हैं
हमारी आँखों के तारे हैं
एक बार फिर
सुन लो, कान खोलकर
हम इनके हैं....ये हमारे हैं।
साहित्यकार व अभियंता मैक्स सीमेंट, ईस्ट जयन्तिया हिल्स मेघालय

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