रेखा घनश्याम गौड़, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
शुरुआत शून्य से कर के,
आपनी आत्मा को आहत कर के,
अपने प्राणों की आहुति लिये नि:श्वास, स्तब्ध
मैं फिर आ खड़ी हूँ शून्य पर।
मेरे लिखे शब्दों का अनुसरण करते जो लोग जी गये वर्षों तक।
मैं हार गयी, जब शक्स मेरा अपना हार गया जीवन से।
ये मात तुम्हारी नहीं मेरी थी,
मेरी भक्ति धूमिल हो गयी,
तुम्हारे जाने से।
जग हँसाई उसने कराई,
उसने मुझको बिसराया।
मैं राह तकती ही तकती ही तकती रही,
वो फलाँ से, फलाँ से, फलाँ से मिल आया।
एक आस थी जो टूट गयी,
साँस तो बची रही, पर एक रूह थी,
जो छूट गयी।
शून्य से प्रारम्भ कर के फिर पहुँची हूँ शून्य तक,
पलंग के कोने से टकराता अंगूठा मेरा,
हृदय का भार शरीर से अधिक ढोता हृदय मेरा,
जर्जर है अब, और मलाल कहता रहता है मुझसे मेरे बारे,
"किंकर्तव्यविमूढ़"।
जयपुर, राजस्थान