परख



रेखा घनश्याम गौड़, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

किस पायदान
पर खड़े हैं 
मूल्यांकन हो इसका
क्योंकि फूलों का
पायदान
पहुंचा तो सकता है शीर्ष पर 
लेकिन टिका नहीं सकता
देर तक हमें वहां
हो सकता है 
ख़तरनाक
एवं जानलेवा 
जिस पायदान पर 
मुसीबतों का शूल हो 
रखो धीरे- धीरे पैर
चुभ सकता है
अवश्य हमारे पैरों में 
लहूलुहान भी कर सकता है
तोड़ सकता है 
मन के उत्साह को 
बो सकता है 
हृदय में
निराशा का बीज
टूट भी सकते हैं हम 
हो सकता है कि
ढूंढ़ने लगें हम 
पलायनवाद का पथ 
लेकिन मित्रों
कह सकता हूं 
इस आश्वस्ति से कि
संघर्ष एवं जद्दोजहद
की भट्ठी की धीमी आंच में
सफलता की रोटियां
भले ही पकें देर से 
लेकिन मीठी होगी वह
इसलिए 
मत भागो
संघर्ष एवं परेशानियों 
के शूल के पायदान से
क्योंकि वह स्थायी रूप से
शिखर पर पहुंचाता है
जहां से गिरने का ख़तरा 
शून्य हो जाता है
जयपुर, राजस्थान
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