विकास माहेश्वरी, मुजफ्फरनगर। श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा समिति के तत्वाधान में संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का कलश यात्रा के साथ शुभारम्भ हुआ, जिसमें शहर के प्रबुद्ध लोगों ने भी हिस्सा लिया। कलश यात्रा टाउनहाल प्रागंण से प्रारम्भ होकर झांसी की रानी, हनुमान मंदिर होते हुए शिवचैक पर भोले बाबा की आरती में शामिल हुई इसके पश्चात सनातन धर्म कथा स्थल पर कलश यात्रा का समापन हुआ, जहां श्रद्धालुओं को भोजन के रूप में प्रसाद भी वितरित किया गया। दिन में तीन बजे दीप प्रज्जवलित कर कथा का शुभारम्भ किया गया।
कथाव्यास युवासंत प्रमोद सुधाकर जी महाराज रंगमहल धाम हरिद्वार नेे मुखारविन्द से कहा कि भगवान के भक्त धुंधकारी का चरित्र आत्मसात कर लें तो जीवन की उलझनें समाप्त हो जाएंगी। उन्होंने परीक्षित जन्म सुखदेव आगमन की कथा सविस्तार सुनाई। महाराज ने बताया पांडवों के पुत्र अर्जुन, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु, अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा, जो राजा विराट की पुत्री थी, वह अभिमन्यु को ब्याही गई थी।
उन्होंने कहा कि युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांच पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, लेकिन वे पांडव ना होकर द्रोपदी के पांच पुत्र थे। उन्होंने कहा कि जानबूझकर चलाए गए इस अस्त्र से उन्होंने उत्तरा को अपना निशाना बनाया। उन्होंने कहा कि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा उस समय गर्भवती थी, बाण लगने से उत्तरा का गर्भपात हुआ और गर्भपात होने से परीक्षित का जन्म हुआ।
उन्होंने कहा कि परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था। सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वे जब 60 वर्ष के थे एक दिन वे क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने उन्हें आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने प्रति उत्तर नहीं दिया। उन्होंने कहा कि राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल दिया और वहां से चले गए। उन्होंने कहा कि अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है। उसकी मृत्यु 7 दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। उन्होंने कहा कि ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी।
उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव का नाम सुझाया और इस प्रकार सुखदेव का आगमन हुआ कथा विस्तार देते हुए महाराज श्री ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। भागवत श्रवण से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। चित्त की स्थिरता के साथ ही श्रीमद भागवत महापुराण कथा सुननी चाहिए। भागवत श्रवण मनुष्यों के सभी क्लेशों को दूर कर भक्ति की और अग्रसर करती है। उन्होंने कहा कि पितरों की शांति के लिए श्रीमद्भागवत का शुभारम्भ हुआ है, इस कथा को सुनने से सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण होती है। कथा के यजमान विनोद धीमान, प्रदीप गोयल, संदीप मित्तल, राजेंद्र गोयल होंगे।
कार्यक्रम में मुख्य पदाधिकारी पवन गोयल, अजय गुप्ता, संदीप मित्तल, अजय गोयल, आनंद गुप्ता, अमित गोयल, नवीन मित्तल, रजत गोयल, अभिषेक आदि कार्यक्रम की सफलता में जुटे है।