डॉ. अ. कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
खुले गगन तले बसा छोटा सा गाँव,
शहर के मानिंद अब बड़ा हो गया है।
लेकिन यहाँ रहने वालों का दिल,
तंग गलियों के मानिंद तंग हो गया है।
कहने को तो चिराग बहुत हैं शहर में,
पर लोगों के दिलों में अन्धेरा हो गया है।
दौलत और शोहरत की बढ़ती चमक,
मगर मानवता का यहाँ क़त्ल हो गया है।
दिखाते इज्ज़त दिल में, माँ- बाप की बहुत,
बुढापे में बाप, तन्हाई को मजबूर हो गया है?
विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53-महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर उत्तर प्रदेश