कोमल मन में कुलबुलाती भावनाओं का दर्शन कराता है कीर्ति वर्धन का दृष्टि संसार (समीक्षा)

राकेश कुमार कौशिक, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

चीन की एक प्रतिष्ठित कहावत है-"किसी को जानना चाहते हो तो उसके साथ यात्रा कीजिये।" यदि आप किसी कवि को समझना चाहते हैं तो उसके रचना संसार मे आपको यात्रा करनी होती है, इसके बिना कवि को समझना कठिन है, अधूरा है। बैंक से अवकाश प्राप्त डॉ अ कीर्ति वर्धन एक सिद्धहस्त लेखक तथा कवि है, जो लगभग एक दर्जन पुस्तकों के रचयिता हैं। प्रस्तुत पुस्तक "कीर्ति वर्धन का दृष्टि संसार" कवि की कलम से निसृतः रचनाओं का संग्रह है, जिसमें आप कवि के कोमल मन में कुलबुलाती भावनाओं का दर्शन आप कर सकते हैं। हाँ! यह अलग बात है कि कवि ने चुनौतिपूर्ण पथ का अनुसरण करने का मन बनाया है-
माना मुश्किलें मेरी राहों में बहुत, 
हौसला मेरा उससे भी बडा है,
कैसे कर दूँ ताल्लुक खत्म जिन्दगी से, 
जीने का हौसला मौत से बडा है
स्वार्थ, लोभ और आपाधापी मे फँसे पडे लोगों को चेतावनी देते हैं, चुटकी लेते हैं और फिर समझाते हुये कहते हैं-
चाँद सितारे दूर गगन में, 
क्यों हम उनकी बात करें,
इन्सान अगर बन पाऊँ तो, 
सार्थक हो जीवन का सपना
कवि भी समाज का हिस्सा होता है, समाज में घटित घटनाओं का वह मूक दृष्टा नही रह पाता है, वह उन घटनाओं को अपनी दृष्टि से देखता है, विश्लेषण करता है। डॉ. कीर्ति वर्धन की दृष्टि समाज में व्याप्त विभिन्न विरुपताओं पर पडती है। कवि मन की छटपटाहट शब्द रूप में प्रकट होती है-
बेटो और बेटियों में फर्क न कीजिये,
दोनों को हक घर मे बराबरी का दीजिये

टुटटे घरो और परिवारों में मची कलह के लिये वे केवल बच्चों को ही दोषी नही मानते हैं। यदि माता पिता का दोष है तो उनको भी दोषी मानने में उन्हे कोई गुरेज नही, संकोच नही-
माँ भी होती आज कुमाता, 
आधुनिकता जिसको भरमाता,
अर्धनग्न बनकर जो घूमे, 
बस बेटों को दोष न दो
सामाजिक समरसता, सद्भाव तथा ऐक्यता के लिये वे परम्पराओं के निर्वाह को महत्वपूर्ण मानते हैं-
परम्पराओं के निर्वाह हमें, 
संस्कृति से जोडते हैं,
पुरखों के बनाये नियम, 
संस्कारों से जोडते हैं|
खरा परखा तजुर्बा, 
विज्ञान कसौटी पर कसा,
रीति रिवाजों के पालन हमें, 
सभ्यता से जोडते हैं
सहयोग और समर्पण के बिना दोस्ती और मित्रता की बात ही क्यों? कवि कहता है-
ढूँढते हो दोस्त तुम, 
तो दोस्त बनना सीखिये,
कर्ण सा साथी मिले, 
दुर्योधन बनना सीखिये
प्रगतिशील विचारधारा के पोषक कवि की वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर भी पैनी नजर है, लिखते हैं-
न अजान बन्द है, 
न सदियों की पहचान बन्द है,
अगर कुछ बन्द है तो, 
माईक की आवाज बन्द है
सीढ़ियों, बैशाखियों के विपरीत वे परिश्रम और योग्यता के समर्थक है-
हमारे बच्चे योग्य बनें, 
आओ अभियान चलायें,
आरक्षण की बैशाखी से, 
खुद को सदा बचायें
और
जिनका मन है बने भिखारी, 
ले आरक्षण दान,
जिनका मन है बनें योग्य, 
और पायें सम्मान
मौसम के बदलते तेवर के लिये वह मनुष्य की लालसा तथा विकास की अंधी दौड को आरोपित करते हैं तथा पर्यावरणीय असन्तुलन व संकट के लिये वह प्राकृतिक संसाधनो के अति दोहन को जिम्मेदार मानते है-
वृक्ष धरा से काट कर, 
बंजर दिया बनाये
गर्मी से राहत मिले, 
कैसे करें उपाय?
फिर स्वयं ही उपाय सुझाते हुये कहते हैं-
चलो लगायें एक वृक्ष, 
बचे ताल तडाग,
नभ से जितनी तब यहाँ, 
चाहे बरसे आग
उत्साह, विश्वास, उर्जा से परिपूर्ण कवि अ कीर्ति वर्धन का दृष्टि संसार अत्यंत व्यापक है। जीवन का कोई पक्ष उनसे बच नही पाया है। पुस्तक का कलेवर, प्रिन्टिंग तथा मुखपृष्ठ, रंग संयोजन आकर्षक है। आप कवि के रचना संसार की यात्रा कर सुखद अनुभूति कर सकेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है
मुजफ्फरनगर,  उत्तर प्रदेश
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