राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
पितृ पक्ष में पिंडदान व श्राद्ध कर्म हेतु भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा करने से भटके हुए प्रेत को पितृ योनी में जाने का रास्ता खुल जाता है, साथ ही उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए हो सके तो पुरुष सूक्त एवं पितृ सूक्त से भगवान शालिग्राम का दूध मिश्रित काले तिल से अभिषेक करें, जिससे आपके पितरों को शांति मिलेगी। वर्ष 2022 को 10 सितम्बर से लेकर 25 सितम्बर तक का समय पित्रो के लिए समर्पित रहेगा।
पितृ पक्ष में कौओं का महत्व
मान्यता है कि कौए पितर का रूप होते हैं। श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण कर निर्धारित तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर के आंगन में किसी भी जगह बैठे रहते हैं, अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वे रुष्ट हो जाते हैं।
आइए जानते हैं श्राद्ध की तिथियां
10 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध (शुक्ल पूर्णिमा), प्रतिपदा श्राद्ध (कृष्ण प्रतिपदा)
11 सितंबर- आश्विन, कृष्ण द्वितीया
12 सितंबर- आश्विन, कृष्ण तृतीया
13 सितंबर- आश्विन, कृष्ण चतुर्थी
14 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पंचमी
15 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पष्ठी
16 सितंबर- आश्विन,कृष्ण सप्तमी
17 तारीख को कोई भी श्राद्ध की तिथि नही होगी ।
18 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अष्टमी
19 सितंबर- आश्विन,कृष्ण नवमी
20 सितंबर- आश्विन,कृष्ण दशमी
21 सितंबर- आश्विन,कृष्ण एकादशी
22 सितंबर- आश्विन,कृष्ण द्वादशी
23 सितंबर- आश्विन,कृष्ण त्रयोदशी
24 सितंबर- आश्विन,कृष्ण चतुर्दशी
25 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अमावस्या
पितरों के निमित पिंडदान और तर्पण अवश्य करें
पितरों के निमित पिंडदान और तर्पण अवश्य करें। 25 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या भी है। 15 दिनों के दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनका आशीर्वाद पाने के लिए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि इन 15 दिनों में पितृ धरती लोक पर अपने परिजनों को देखने के लिए आते हैं।
माना जाता है कि अगर आपके पितर आपसे खुश हैं, तो दुनिया कि कोई ताकत आपका बाल भी बांका नहीं कर सकती और अगर वो नाराज़ हो गए तो कोई देव या देवी आपको बचा नहीं सकते और धीरे-धीरे पूरे परिवार का सर्वनाश हो जाता है। पितर का मतलब आपके पूर्वज और श्राद्ध का मतलब श्रद्धा। अपने पूर्वजोंं का श्रद्धापूर्वक सम्मान करना ही श्राद्ध होता है।
ऐसा कहा जाता है कि मरणोपरांत भी आत्मा भटकती रहती है, उसी आत्मा को तृप्त करने के लिये तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष या श्राद्ध इस बार शनिवार, 10 सितंबर से रविवार, 25 सितंबर तक चलेंगे। पूर्वजों की संतानें जौं और चावल का पिंड देते हैं। कहा जाता है कि इस दौरान हमारे पूर्वज कौए का रूप धारण कर के आते हैं और पिंड लेकर चले जाते हैं। श्राद्ध के वक्त लोग ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ साथ दान और भंडारे भी करते हैं।
इन बातों का रखें खास ध्यान
1.श्राद्धों के वक्त आपके पूर्वज किसी भी तरह किसी भी रूप में आपके घर आ सकते हैं तो किसी भी आने वाले को घर से बाहर न भगाएं।
2. पितृ पक्ष में पशु-पक्षियों को पानी और दाना देने से लाभ मिलता है।
3.पितृ पक्ष के दौरान मांस-मदिरा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
4.तर्पण में काले तिल का प्रयोग करें।
5.पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।
6. कुत्ते, बिल्ली, और गाय को मारना या हानि नहीं पहुंचानी चाहिए।
श्राद्ध हमेशा दिन के अष्टम भाग में अपराह्न के कुतुप काल मे ही करना चाहिए।
इस मुहुर्त में गंगाजल, दूध, घी, मधु, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए
शास्त्रों के मुताबिक़ पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितृगण पितृलोक की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। धर्म शास्त्रों के मुताबिक़ आश्विन मास कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिनों के लिए पितृगण अपने वंशजों के यहां धरती पर अवतरित होते हैं और आश्विन अमावस्या की शाम समस्त पितृगणों की वापसी उनके गंतव्य की ओर भी होने लगती है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़ पितृगण सूर्य चंद्रमा की रश्मियों के कारण वापस चले जाते हैं। ऐसे में वंशजों द्वारा प्रज्वलित दीपों से पितरों की वापसी का मार्ग भी दिखाई देता है और वह आशीर्वाद के रूप में आपको सुख- शांति प्रदान करते हैं, इसलिए पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन शाम के समय पितरों को भोग लगाकर घर की दहलीज पर दीपक जला कर अवश्य प्रार्थना करते हुए कहना चाहिए। हे पितृदेव! जाने- अनजाने में जो भी भूल-चूक हुई हो, उसे क्षमा कर हमें आशीर्वाद दें।
अपनी राशि के अनुसार ही पितृपक्ष में दान करें
विष्णु पुराण के मुताबिक़ पितृपक्ष में दान देने का विशेष महत्व है, लेकिन यही दान अगर राशियों के अनुसार पूर्वजों की स्मृति में दान किया जाए तो यह विशेष रूप से लाभप्रद माना जाता है।
मेष- भूमि दान अथवा संकल्प और दक्षिणा सहित मिट्टी के ढेलों का दान विशेष फलदायक अथवा लाल वस्तुओं का दान, तांबा दान करें।
वृष- सफेद गाय का दान अथवा कन्या को खिलाएं खीर।
मिथुन- आंवला, अंगूर, मूंग का दान, मूंग की दाल का दान है विशेष लाभप्रद।
कर्क- नारियल, जौ, धान का दान करना है उचित।
सिंह- स्वर्ण, खजूर, अन्न आदि का दान भी विशेष फलदायी।
कन्या- गुड़, आंवला, अंगूर, मूंगा, मूंग की दाल आदि का दान करने से होती है विशेष कृपा की प्राप्ति।
तुला- खीर दान, दूध से बनी वस्तुओं का दान करना लाभकारी।
वृश्चिक- भूमि दान अथवा संकल्प और दक्षिणा सहित मिट्टी के ढेले का दान है लाभदायक।
धनु- राम नाम लिखा वस्त्र, अंगोछा आदि का दान करने से होती है कृपा की प्राप्ति।
मकर- तिल के तेल और तिल का दान है उचित ।
कुंभ- तिल का दान, तेल से बने पदार्थ का दान भी है लाभदायक रहेगा।
मीन- धार्मिक पुस्तक जैसे गीता आदि का दान करना बेहद शुभ रहेगा।
संस्कृति संरक्षक आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश