गृहस्थ जीवन में रहकर भी संत थे सौखी लाल यादव

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 इंसान अपने सद्कर्मों से गृहस्थ जीवन में रहकर भी संत बन सकता है । उसे कपड़े रंगने, किसी भी तरह का दिखावा, आडंबर आदि करने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है । ऐसे ही एक गृहस्थ थे, जिन्होंने गृहस्थ रहते हुए भी एक संत का जीवन जिया । जिनका नाम सौखी लाल यादव जी था । स्मृति शेष सौखी लाल यादव जी का जन्म 5 जुलाई 1932 ई. को एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था । इनके माता पिता का नाम श्रीमती सुरती देवी व श्री मल्लर यादव जी था । ये चार भाई, दो बहनों में सबसे बड़े थे । इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा रानीगंज में पूर्ण की । इनके अंदर बचपन से ही इमानदारी, सत्य, सदाचार, सेवाभाव जैसे गुणों के प्रति अटूट प्रेम था । 1948 ई. में मैट्रिक पास हुए और उनका विवाह पार्वती देवी जी के साथ संपन्न हुआ । किसान परिवार में जन्मे, पले-बड़े और कृषि को ही अपनी आजीविका का प्रमुख साधन बनाया । सौखीजी चाहते तो एक सरकारी अफसर बन सकते थे, क्योंकि उनके पास कई प्रस्ताव आये । परन्तु वे सभी सरकारी प्रस्तावों को ठुकरा कर खेती- किसानी में ही मस्त रहे। पाई -पाई का हिसाब अपने पूज्य पिता को देते थे । घर से बाहर एकांत में पशुओं के बाड़े में रहते थे और बड़े अच्छे से पशुओं की देखभाल करते थे । छोटों के प्रति प्यार, बड़ों को सम्मान वे हमेशा देते थे । गरीब- मजदूर वर्ग के प्रति वे हमेशा सहयोग की भावना रखते थे । लोग स्नेहवश उन्हें सौखी बाबू कहकर संबोधित करते थे । सौखी लाल जी ने दीक्षा लेकर गृहस्थ धर्म भी पालन किया और नियमिततौर पर ध्यान-उपासना में लीन रहे । सौखी लाल जी एक ऐसे महान व्यक्तित्व हैं, जिनमें एक साथ कई विभूतियों के दर्शन किये जा सकते हैं, जैसे- कृषक, गृहस्थ,संत, समाजसेवी, सरस्वती -साहित्य साधक, चिंतक, उपदेशक आदि । उनकी कुछ अपनी उक्तियां - 1. मांगन भला न बाप से जौं विधि राके टेक । 2. लक्ष्मी का बास तीन स्थानों पर स्त्री के ओठ, झाडू के नोक और डिबिया के टेम पर । 2 मार्च 2010 ई. को आप श्री “ आब हमरा जाय देय ” कहकर परमात्मा में विलीन हो गये । महान आत्मा सौखी लाल यादव जी के त्याग -तपस्या भरे जीवन पर अगर गहराई से शोध कार्य किया जाए तो इस संसार को एक अद्भुत कृति प्राप्त हो सकती है । ‘गृहस्थी में रहकर सन्यासी धर्म निभाया, निबलों - बिकलों पर स्नेह लुटाया । न किसी से बैर न किसी से दुश्मनी - सत्य पथ चल सब पर प्रेम बरसाया ।। जीवन भर त्याग सदैव करते रहे, कर्म पथ पर चलके ईश्वर भजन गाते रहे । वाणी सुंदर, कर्म सुंदर, धर्म सुंदर, कर्त्तव्य सुंदर - नित-नित तपकर सोने से कुंदन बनते रहे।

ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश

Comments
Popular posts
सीएससी बाल विद्यालय में हिमाचल दिवस व चैत्र नवरात्र का पर्व धूमधाम से मनाया, एडमिशन फीस बिल्कुल फ्री करने की घोषणा भी की
Image
सहारनपुर में बसपा को झटका: बसपा की जनसभा में मायावती के साथ मंच पर दिखने वाले पूर्व विधायक रविंद्र मोल्हू भाजपा में शामिल
Image
का दो टूक हिमन्त बिश्व शर्मा: कांग्रेस पुराने पैसे की तरह स्थिर है, मोदी की गारंटी और मामा की वारंटी हो तो विकास संभव है
Image
भाजपा को राहतः राजपूत चेतना मंच के संस्थापक सदस्य सुरेंद्र पाल सिंह ने राघव लखन पाल शर्मा को दिया समर्थन
Image
दो और समर स्पेशल ट्रेन 18 अप्रैल से
Image