शिक्षा और शिक्षक

 

डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

शिक्षा मनुष्य को सुसंस्कारित व चरित्रवान बनाती है। शिक्षा आत्म साक्षात्कार है जो आत्मा का दिग्दर्शन करा देती है।जो व्यक्ति विद्यार्थियों को विद्यालयों में पढ़ाते हैं वे शिक्षक कहलाते हैं। शिक्षक का कार्य है शिक्षा देना। अच्छे बुरे की पहचान कराना।वह शिष्य के मस्तिष्क में पहले से मौजूद मेधा को विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। ज्ञान व अनुशासन का पाठ पढ़ाता है।विद्यालयों में अलग अलग प्रकार के विषयों के अलग अलग शिक्षक होते हैं।भाषा विषयों के शिक्षक भी अलग अलग होते हैं। कोई हिंदी,संस्कृत अंग्रेजी उर्दू पढ़ाते हैं आदि। शिक्षक का पद सबसे उच्च माना जाता है। प्राचीनकाल में गुरुकुल में गुरु शिष्यों को विद्यादान देते थे। उन्हें अस्त्र शस्त्र शास्त्र का ज्ञान व प्रशिक्षण देकर उनका सर्वांगीण विकास करते थे। आजकल गुरु को शिक्षक कहते हैं। हम प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं। श्रेष्ठ शिक्षकों को इस दिन सम्मान समारोहों में सम्मानित भी किया जाता है यह समारोह ब्लॉक स्तर, जिला स्तर राज्य स्तर व राष्ट्रीय स्तर तक का आयोजित होता है। गुरु ब्रह्मा विष्णु महेश से भी बढ़कर महिमा गान किया है। शीश दिए सतगुरु मिले तो भी सस्ता जान कहा गया है। गुरु कौन है ? गुरु वह है जो शिष्य में छिपे अज्ञान रूपी तिमिर को हर ले। ज्ञान का जीवन मे आलोक कर दे। इसलिए ऐसे गुरु के चरणों को मणि की ज्योति के सदृश्य बताया है गुरु की आज्ञा का सदैव पालन करना चाहिए। तभी शिष्य से गुरु प्रसन्न रहते हैं।गुरु रूठना नहीं चाहिए। गुरु रूठ जाए तो कहीं ठौर नहीं मिलती। कहीं जगह नही मिलती। और हरि रूठे गुरु ठौर है यदि हरि यानि भगवान रूठ जाए तो उन्हें सतगुरु मना लेंगे लेकिन गुरु ही रूठ गया तो किसे मनाओगे। आजकल शिक्षक तकनीकी डिजिटल युग मे मोबाइल इंटरनेट पर व्यस्त रहते हैं। डिजिटल युग मे सभी कार्य ऑनलाइन होने से गुरु शिष्य का आपसी संवाद भी कम हो गया है। ऑनलाइन शिक्षण हो रहा है। आज के शिक्षक के पास विद्यार्थी को शिक्षा प्रदान करने के मुख्य कार्य के साथ ही बी एल ओ पोषाहार किचन गार्डन जनगणना पशुगणना सर्वे कोविड कार्य वेक्सीन ड्यूटी सहित कई कार्य हैं। बच्चों को पढ़ाने का तो समय ही नहीं मिलता। आज की शिक्षा जीवन मूल्यों पर आधारित नहीं रही। आज की शिक्षा मैकाले की शिक्षा है जो सिर्फ कागज़ की डिग्रियां तो दिलाती है लेकिन नैतिक शिक्षा व जीवन मे आवश्यक अनुभवों को नज़र अंदाज़ करती है। मूल्य आधारित शिक्षा अब नहीं रही। सा विद्या या विमुक्तये की शिक्षा अब कौन देता है मूल्यांकन परीक्षा आदि का स्तर भी सुधारने की आवश्यकता है। डिजिटल कक्षा कक्षों में आध्यात्मिक व नैतिक मूल्य नहीं सिखाये जाए तो ऐसी शिक्सग6 किस काम की। जीवन के अनुभव तो कार्य करने से प्रेक्टिकल करने से होता है जीवन मे सीखने व सिखाने की क्रिया निरन्तर चलती है। गरीब विद्यार्थियों की शिक्षा में मदद के लिए डॉ. सर्वपल्ली राधकृष्णन अब्दुल कलाम शंकर दयाल शर्मा ने बहुत कार्य किया। हर भारतीय विद्यार्थी आत्मनिर्भर बने स्वावलम्बी बने चरित्रवान बने उसका सर्वांगीण विकास हो सभी महापुरुष यही चाहते थे। 

कवि, साहित्यकार भवानीमंडी राजस्थान


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