कई साल से हम लोग इंपोर्टेड दाल खा रहे थे। 2 साल पहले मोदी ने इस पर रोक
लगानी शुरू कर दी और अब पूरी तरह से बंद कर दिया और दाल की उपज देश में
बढ़ाने के लिऐ किसानों को प्रोत्साहित किया । कृषि बिल तो बहाना था असली
किस्सा कुछ यूं है। 2005 में मनमोहन ने दाल पर दी जा रही सब्सिडी को खत्म
कर दिया। उसके 2 साल के बाद सरकार ने नीदरलैंड ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से
समझौता कर दाल आयात करना शुरू कर दिया। कनाडा ने अपने यहां लेंटील दाल के
बड़े-बड़े फार्म स्थापित किए जिसकी जिम्मेदारी वहां रह रहे पंजाबी सिखों के
हवाले किया। कनाडा से भारत में बड़े पैमाने पर दाल आयात होने लगा। यहां ये
बात जानना जरूरी है कि क्षेत्रफल की दृष्टि से कनाडा भारत से तकरीबन तीन
गुना बड़ा है. और कनाडा में दाल नहीं खाई जाती. और पैदा सबसे ज्यादा की जाती
है. बड़े आयातकों में सबसे ज्यादा पंजाब के और ऐक मध्यप्रदेश के नेता हैं
जो राजनीतिक पार्टियो से जुड़े हैं। जैसे ही मोदी ने आयात पर रोक लगाई इनका
खेल शुरू हुआ। इनके कनाडा के फार्म सूखने लगे। खालिस्तानियों की नौकरी जाने
लगी इसीलिए जस्टिन ट्रुडो ने किसानों के आंदोलन का समर्थन किया था। अब
धमकी दी जा रही है कनाडा के खालिस्तानी सिखों को पंजाब वापस भेजा जाएगा।
कृषि कानून का सबसे ज्यादा विरोध विदेशी ताकते और खालिस्तानी सिख कर रहे
है, अब भारत का किसान अमीर होगा तो इन्हें तो कष्ट होगा ही।
मोदी
ने भारत को विकसित करने का बीड़ा उठाया है और जनता भी साथ दे रही है,
जल्द ही भारत की आर्थिक हालत विश्व मे सबसे अच्छी होगी क्योंकि जिस देश में
अन्न बाहर से खरीदना नहीं पड़ता वही देश सबसे जल्द् विकसित होते है।
अदानी और अंबानी ने जो भी व्यापार शुरू किया, विदेशियों की मोनोपली का
खात्मा करते हुए भारतीय ग्राहकों को जबरदस्त फायदा कराते हुए मुनाफा कमाया
है। अब सोचिए कि पहले कितनी लूट मची हुई थी...??
जब 2016 में जियो नहीं था, तब आपका मोबाइल बिल कितना आता था ?
कितनी लूट मची थी... अब हर कंपनी दाम घटाने पर मजबूर है, देश के गरीब भी
इंटरनेट यूज कर रहे हैं और मिस्ड काल करने के बजाय अब सीधा बात करते हैं,
और सोशल मीडिया खूब फल फूल रहा है, समान्य जन अपनी बात सोशल मीडिया के
माध्यम से लोगों तक पहुंचा रहे हैं और पुरानी सरकारों के पाप जन जन तक
पहुचने लगे हैं, नहीं तो सिर्फ टी वी (एलेक्ट्रॉनिक ) मीडिया का एकाधिकार
था, अपनी मर्जी चलाते थे।अदानी एग्रो प्रगति कर रही
है तो विरोध हो रहा है। अदानी गोडाउन क्यों बना रहा है...? जब अपने देश
में पेप्सिको, वॉलमार्ट, हिन्दुस्तान यूनीलीवर, आईटीसी जैसी विदेशी
कंपनियों ने पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में बड़े-बड़े गोडाउन खड़े कर
लिए तब कोई विरोध नहीं हुआ... तो अब अदानी का ही विरोध क्यों??? रिलायंस
रिटेल, रिलायंस डिजिटल अब सारे देश में पहुंच रहे हैं, तो अमेज़न और
फ्लिपकार्ट को तकलीफ़ होना स्वाभाविक है... स्वदेशी पतंजलि के आने से
हिन्दुस्तान यूनीलीवर (कोलगेट, लक्स, पाँड्स) का एकाधिकार समाप्त हो गया,
तो उन्हें तकलीफ़ तो होनी ही थी।चीन
दुनिया भर के साथ भारत में भी 5G तकनीक बेचने को उतावला हो रहा है, ऐसे
में जियो की संपूर्ण स्वदेशी 5G तकनीक से उसे तकलीफ़ होगी ही... अदानी
पोर्ट्स और अदानी एंटरप्राइज़ के कारण सबकी मोनोपली बंद हो गई है।अब,
जब अपने देश के उद्योगपति आगे बढ़ रहे हैं, और देश को फायदा पहुंचा रहे
हैं, तो अपने ही देश के कतिपय लोग उनका विरोध क्यों कर रहे हैं?क्या अदानी, अंबानी या पतंजलि आपको जबरदस्ती अपना सामान बेच रहे हैं, या आपसे कुछ ले रहे हैं...?
खेल समझिए!अब पंजाब के किसान नेता उनके विरोध में आ गए हैं... अदानी गोडाउन क्यों बना रहा है...?? हमारी ज़मीन हड़प लेगा... आदि-आदि। पंजाब
में देशी-विदेशी कंपनियों के गोडाउन बरसों से मौजूद हैं, वह चलता है... अब
अदानी बनवा रहा है तो कहा जा रहा है कि जमाखोरी होगी और कीमतें बढ़ेंगी। हकीकत
तो यह है कि अब तक जो लाखों टन अनाज, सब्ज़ियां और फल सड़ जाते थे, वे अब
इनके गोडाउन में सही तरह से भंडारित हो सकेंगे। तकलीफ़ यह है कि अब महंगाई
काबू में रहेगी और बिचौलियों को मिलने वाली मोटी मलाई बंद हो जाएगी। महंगाई
तो सालों से बढ़ती आ रही है, तो अब ही अफवाहें क्यों फैलाई जा रही हैं...?
क्योंकि अदानी-अंबानी से कई विदेशी एजेंटों को तकलीफ़ हो रही है, और कई
लोग तो कुछ भी जाने-समझे बगैर सिर्फ और सिर्फ मोदी-विरोध में ये अफवाहें
फ़ैला रहे हैं और अपने साथ-साथ सबके पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं...!!
वामपंथी
और विपक्ष की मुश्किल यही है क्योकि अगर देश में खुशहाली और प्रगति होगी
तो इन परिवारवादी पार्टियो की दुकान तो बंद होगी ही और चीन से चंदा मिलना
भी बंद हो जाऐगा.॥
दिल्ली
में किसानों के नाम पर हो रहे हुड़दंग में पिछले कुछ दिनों से एक चेहरा
यूपी के एक किसान नेता का भी चमक रहा है। राकेश टिकैत नाम के इस नेता के
जनाधार का यह सच भी जानिए। पूरे उत्तरप्रदेश के किसानों का ठेकेदार बनकर
दिल्ली में चमक रहे ये नेता जी बहुजन किसान दल बनाकर 2007 में विधानसभा का
चुनाव अपने गृह जनपद मुजफ्फर नगर की खतौली सीट से लड़ गए। उस चुनाव में
पड़े कुल 120632 वोटों में से नेता जी को वोट मिले थे केवल 9095 (7.5%)।.
नेता जी की जमानत जब्त हो गयी थी और नेता जी उस चुनाव में छठे नंबर पर आए
थे। इतनी प्रचंड पराजय के सदमे से सम्भलने में नेता
जी को काफी समय लगा. इस सदमे के 7 साल बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में नेता
जी ने कांग्रेस+ राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रीय
लोकदल के टिकट पर अमरोहा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार नेता जी को कई
गुना बड़ा सदमा लगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में नेता जी को अमरोहा सीट पर
कुल पड़े 10.95 लाख वोटों में 1% से भी कम, केवल 9539 (0.87%) वोट मिले थे।
यह बताना बहुत जरूरी है कि दोनों बार नेता जी पूरा गणित लगाकर इस हिसाब से
चुनाव मैदान में उतरे थे कि इन सीटों पर किसान और उनकी जाति के मतदाताओं
की संख्या सबसे ज्यादा है। उन चुनावों में किसानों ने जमकर वोट भी डाला था
और यह खुलकर बता दिया था कि उनका नेता कौन है।