खुलासाः महाभारत काल में मिले बंजारा समाज के क्षत्रिय होने के प्रमाण 


एडवोकेट जे के भेलोरिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


बंजारा क्षत्रिय जाति का प्राचीन गौरवशाली इतिहास मौर्य वंश, गुप्तवंश , वैशाली का लिच्छवी वंश, कुषाण वंश, चेरो वंश, मौखरी राजवंश से जुड़ा है। कुछ षड़यंत्रकारी इतिहासकारों द्वारा इस बात को दबा दिया गया, जबकि सत्य यह है कि आज का राजपूत शक जाति से उत्पन्न हुआ है, जो विदेशी थे। मनुस्मृति के अनुसार लिच्छवी लोग व्रात्य या बंजारा क्षत्रिय थे। उनकी गणना क्षलल, मल्ल, नट, करण, खश और दविड़ के लोगों के रूप में होती थी।
वैशाली शाखा में जैन तीर्थंकर भगवान महावीर और कौशल शाखा में गौतम बुद्ध हुए। ये बंजारा क्षत्रिय थे। कुछ ग्रन्थों में इस वंश को हीन कहा गया हैं, जबकि बौद्ध, जैन के पाली और प्राकृत गं्रथो में इन्हें उच्च कुल का बताया गया है। भगवान कृष्ण भी चंदकुल के बंजारा क्षत्रिय थे। महाभारत के रचनाकार वेदव्यास और सत्यवती केवट की पुत्री थी और ये बंजारा समाज के थे। गौतम बुद्ध के समसामयिक मगध के राजा बिंबसार ने वैशाली के लिच्छवी वंश के यहाँ सम्बन्ध किया था। गुप्त सम्राट ने भी लिच्छवी कन्या से विवाह किया था। चेरो वंश जो झारखंड में क्षत्रिय आदिवासी कहलाते हैं। जो दक्षिण भारत स्थित कर्नाटक के जंगलों से आध्रप्रदेश होते झारखंड के जंगलों में घुस गये और बिहार व झारखंड में 12वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी तक शासन किया था, ये सभी बंजारा क्षत्रिय ही थे। मेदनी राय इसके चर्चित राजा थे, जिन्होंने 1661 ईसवी में पलामू झारखंड में मुगल काल में बिहार के गवर्नर दाऊद खान के साथ युद्ध किया था, हालांकि मेदनी राय उस युद्ध मे हार गये थे, लेकिन 1664 में उन्होंने फिर से अपने किले पर कब्जा कर लिया था। यह खुद को भगवान राम के वंशज कहते थे और सूर्य वंश का बताते थे। वे राम को आराध्या मानते थे। आज भी झारखंड में चेरो जाति के लोग बताते हैं कि वनवास के समय राम यहां रहे थे, इसके अनेको प्रमाण हैं। दरभंगा राज की स्थापना बंजारों से युद्ध के बाद ही मुगल काल में हुई थी। 



भारत के इतिहास में आज के राजपूत का उल्लेख 10वीं शताव्दी से मिलता है, जो प्राचीन क्षत्रिय से बिल्कुल अलग रहने के कारण मात्र राज परिवार के नाम पर कुछ राजपूत इतिहासकारों ने अपने को क्षत्रिय से जोड़ा, जो बिल्कुल गलत हैं। वास्तविक प्राचीन क्षत्रिय के बंजारा ही हैं, जिसके अस्त्र-शस्त्र तीर, धनुष, गदा और तलवार रहे हैं। ये सिंधु घाटी सभ्यता के मूल निवासी थे, जो आधुनिक अनुसंधान से 7800 से 2500 ईसवी पूर्व सरस्वती नदी के किनारे उत्तर भारत में बसे हुए थे। यह सिंध, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, वगावत तक फैली हुई करीब 2600 बस्तियों का साक्ष्य मिला है। ये यहां दक्षिण भारत मे विदेशी आक्रमणकारियों से तंग आकर बसे थे। उसी समय बिहार के बंजारा क्षत्रिय नेपाल में जाकर बसे, जिन्होंने लम्बे समय तक नेपाल में शासन किया था। लच्छविनी वंश ने मगध पर भी लम्बे समय शासन किया था। 
हड़प्पा सभ्यता या सरस्वती नदी सभ्यता में बंजारा क्षत्रिय राजा थे। सारस्वत ब्राह्मण सप्तर्षियों के वंशज कहलाते थे, जो राजा के पुरोहित, न्यायाधीश, सलाहकार, चिकित्सक, महामंत्री, धोबी, चमार  जाति थी। सोलंकी, चैहान, राठौड़ राजपूत छत्रिय थे, जो नट और खस जाति के थे। मनुस्मृति के अनुसार इसी वंश में महावीर और बुध हुए जो आज बंजारा अनुसूचित जाति है। आज से 5000 ईसवीं पूर्व से 10 वीं शताब्दी तक बंजारा क्षत्रिय का शासन संपूर्ण भारत पर रहा।


खोजकर्ता इतिहासकार एवं एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
 विशेष सहयोगी बंजारा आरके राठौर एडवोकेट दिल्ली


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