इतिहास के अभूतपूर्व पन्नों को समेटे हिमाचल प्रदेश की छिबरी माता का ऐतिहासिक मन्दिर

राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिला की पांंगणा उप-तहसील के परेसी पटवार वृत के फेगल गाँव को कुदरत ने बेसुमार खूबसूरती बख्शी है। यह रमणीक गांव पांगणा से लगभग 12 किलोमीटर दूर पांगणा-फेगल मार्ग पर बसा है। फेगल एक ऐतिहासिक गांव है। फेगल अनाम शासको के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथाएँ संजोए एक समृद्ध धरोहर स्थल है। यह गांव रहस्यमय गढ़, खंडहरों और पुराने मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। फेगल शिव और शक्ति उपासना का केन्द्र रहा है। फेगल में छिबरी माता (छीतेश्वरी माता) का मंदिर एक लघु टेकड़ी पर स्थित है। धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से अभी तक यह गांव न तो व्यवस्थित हो सका और न ही इसका समुचित विकास हुआ है।


आजादी के बाद सभी राजनीतिक दल दूर पार स्थित फेगल के प्रति उदासीन रहे। 2007-08 से पूर्व फेगल जाने के लिए बहुत दुष्कर रास्ता था। भारत सरकार द्वारा वित पोषित प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत पांगणा- मझांगण की कठिन घाटी को जोड़ने के लिए सड़क का निर्माण कार्य 21 मार्च 2006 को शुरू होने के बाद अब पांगणा से फेगल तक छोटे-बड़े वाहन योग्य सड़क बनने से आवागमन बहुत ही आसान हो गया है। 560.65 लाख रुपये की अनुमानित लागत से यह सड़क कार्य एक वर्ष में 20 मार्च 2007 पूरा होना था, लेकिन आज 13 वर्षों के बाद भी 22 किलोमीटर लंबी यह सड़क मझांगण नहीं पहुंच पाई है। इसी कारण थाच, पज्याणु, छंडयारा, घाड़ी, उत्तर वैणी, धार, फेगल के प्राचीन देव स्थल आज भी बहुतों के लिए अपरिचित ही हैं।


फेगल गांव के समाजसेवी अध्यापक बुद्धि सिंह का कहना है कि जहां आज फेगल पाठशाला भवन बना है, प्राचीन काल में उसी स्थान पर 60 परिवार रहते थे। छिबरी देवी की सही पूजा-अर्चना न होने से देवी के रुष्ट होने से भयंकर दैवी प्रकोप के कारण 60 परिवार नष्ट हो गये थे। तदोपरान्त जैसे-तैसे एक परिवार स्थापित हुआ और आज पुनः यहाँ लगभग 60 परिवार रहते हैं। 1960-61 में प्राथमिक  पाठशाला भवन के निर्माण के समय इस स्थान पर दो मूर्तियां तथा अनेक मानव कंकाल निकले थे। 1960-61 तक यहाँ पर कुछ प्राचीन कोठरियां खंडहर रुप में विद्यमान थी, जो इस स्थान से जुड़े रहस्यमय चमत्कारों तथा ऐतिहासिकता को प्रमाणित करती हैं।


ऐसी भी मान्यता है कि यहां सुकेत रियासत की जेल थी। फेगल की छीबरी माता का प्राचीन मंदिर और परिसर अनेक रोचक इतिहास अपने आँचल में  समेटे हुए है। साहित्यकार डॉक्टर हिमेन्द्र बाली का मानना है कि फेगल जैसे दुर्गम स्थान पर 60- परिवारों की यह बस्ती संभवतः मवाणो की रही होगी तथा 60 परिवारों का दैवी दोष से नष्ट हो जाना, किसी महामारी की ओर संकेत करता है। डॉक्टर हिमेन्द्र बाली का मानना है कि द्रुत क्रीड़ा के बाद पांडवो को 12 साल का वनवास तथा एक साल का अज्ञात वास मिला था। इस दौरान पांडव यहाँ भी आए थे तथा उन्होंने फेगल धार, उत्तरवैणी, घाड़ी, छण्डयारा, पांगणा, शिकारी देवी की इसी चरण गंगा रुपी पांगणा खड्ड के किनारे- किनारे मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार करते हुए तत्तापानी तीर्थ, मझान्गण में महीदेव, फेगल में छीबरी माता, धार में शिवलिंग, उत्तर वाहिनी में गुप्त गंगा, घाड़ी में शिवद्वाले, छंडयारा मंदिर के बाद पांगणा में अंबरनाथ मंदिर की स्थापना की।


प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण फेगल भौगोलिक दृष्टि से जहाँ सुंदर, सुरम्य एवं सुषमा संपन्न है, वहीं धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत पावन है। छिबरी देवी मंदिर परिसर में गणेश, भगवान विष्णु, हनुमान, कुबेर आदि अन्य देवी देवताओं की  अनेक खंडित मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। प्राचीन मूर्तियों में एक कलात्मक मूर्ति में माँ दुर्गा को महिषासुर का मर्दन करते हुये दर्शाया गया है। ऐसा लगता है कि यही मंदिर का मूल श्री विग्रह भी है, जबकि तुलनात्मक दृष्टि से कुछ मूर्तियां नवीन हैं। संभव है किसी समय फेगल गढ़ पर हमला हुआ हो, जिससे यह मंदिर खंडहर मे बदल गया हो। तब से लेकर आज तक इसकी उपेक्षा ही होती रही।


इस ऐतिहासिक धरोहर की शोचनीय दशा को देखकर अब स्थानीय वासियों ने सहकारिता के बल पर इस धरोहर के संरक्षण और जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया है। इमारती लकड़ी के अभाव के कारण आधुनिक शैली के मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। फेगल वासियों की छीबरी माता पर अटूट श्रद्धा है। अध्यापक बुद्धि सिंह का कहना है कि छीबरी माता कील, मुहासो, त्वचा रोगों के निवारण, संतान सुख, अन्न-धन, गोधन सुरक्षा के लिए पूजी जाती है। प्रेत बाधाओं  से समस्त प्रकार की रक्षा और भक्ति-शक्ति प्रदान करने वाली छिबरी माता सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूर्ण करती है। खंडहर में बदल चुकी ऐतिहासिक धरोहरों के पुनर्निर्माण के लिए भाषा कला संस्कृति विभाग में किसी तरह का प्रावधान न होने के कारण अब यह मंदिर नए रूप रंग में नजर आएगा।


पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डाक्टर जगदीश शर्मा, सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाक्टर हिमेन्द्र बाली और व्यापार मंडल पांगणा के अध्यक्ष सुमित गुप्ता, संस्कृति मर्मज्ञ राज शर्मा ने प्रदेश और केन्द्र सरकार  से मांग की है कि खंडहर में  बदल चुकी प्रदेश ऐतिहासिक धरोहरों, किलों, गढ़ो, मंदिरों, स्मारकों के पारंपरिक स्वरूप को बहाल करने के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया जाए, ताकि ये ऐतिहासिक स्थल देसी-विदेशी पर्यटकों, पुरातत्व व कला प्रेमियों तथा विद्यार्थियो के आकर्षण का केंद्र बन सकें। मंदिर परिसर से प्रकृति की सुन्दरता को चार चाँद लगाते सब दिशाओं में आकर्षक दृश्य स्पष्ट दिखाई देते हैं। आस पास के पहाड़ जंगलों  से लदे भरे हुए हैं।प्राकृतिक सौंदर्य और प्रदूषण मुक्त वातावरण के कारण यहाँ पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।


लोगों की मांग है कि कछुआ गति से चल रहा पांगणा-मझांगण सड़क का कार्य युद्ध स्तर पर होना चाहिए, ताकि मझांगण से आगे भलाण-तत्तापानी तक सड़क निर्माण के टेंडर होकर सड़क के तत्तापानी  से जोड़ने के प्रयास शुरू हो सकें। जिससे ऐतिहासिक नगरी पांगणा से शिमला की दूरी लगभग 15 किलोमीटर कम होने से पांगणा उप-तहसील के साथ सुंदर नगर निर्वाचन क्षेत्र, नाचन  निर्वाचन क्षेत्र के साथ हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सराज निर्वाचन क्षेत्र के पांगणा उप-तहसील की सीमा से लगे गांवों को तो लाभ होगा ही शिकारी देवी व कमरुदेव घाटी में पर्यटन को भी द्रुत गति से पंख लगेंगे।


संस्कृति संरक्षक आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश

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