कुंवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
देश में शान्तिपूर्वक रैलियाँ और धरना प्रदर्शन करने का सबको कानूनन अधिकार प्राप्त है। लोकतंत्र में जब किसी पक्ष की आवाज नहीं सुनी जाती, तो वह अपने या सामाजिक हित के लिये ऐसे आन्दोलन करते हैं। और यही ट्रेन्ड चुनावों में भी चलता है। जिसमें राजनैतिक दल अपनी ताकत और माँगों का मुजाहरा करते हैं, लेकिन कठिनाई जब पैदा होती है, जब भीड़-भाड़ वाले देश में ऐसे धरने प्रदर्शनों से आम जनजीवन पूरी तरह प्रभावित हो जाता है। सड़के रेल सब अराजकता की भेंट चढ़ जाती हैं। हर जगह जाम ही जाम या बन्द ही बन्द। इससे आम जनजीवन ढप्प पड़ जाता है और सरकारी गै़रसरकारी सम्पत्ति का भी नुकसान होता है। ऐसे मामलों में लोगों की जान भी जाती है.और सबके साथ ही पुलिसबल के सामने ऐसे प्रदर्शनों को शान्तिपूर्वक सम्पन्न कराना एक कठिन चुनौती होता है।
कहने को तो ऐसे तमाम हंगामें कभी छात्रों, मजदूरों, किसानों और कर्मचारियों आदि के हित लिए किये जाते हैं, लेकिन फायदा किसे कितना होगा, यह बाद की बात है, परन्तु तमाम तरह के नुकसान तो उसी दिन हो जाते हैं। राजनैतिक दल कभी किसी के कन्धे पर बन्दूक रखकर निशाना साधते हैं, तो कभी किसी दूसरे कन्धे पर। कभी-कभी परदे के पीछे रहकर भरपूर समर्थन, खाद-पानी देकर भी अपना हित साधते हैं, लेकिन हथियार बनी जनता और उसके लहूलुहान कंधों की परवाह किसे है ? सब अपनी अपनी ढपली अपना राग अलापते हैं, और निश्चल जनता के कन्धों की सवारी करते हैं।
आधुनिक विज्ञान के युग में क्या सोशल मीडिया का प्रयोग हो और ऐसे मामले सड़को पर न होकर एक तय एकान्त स्थल पर नहीं हों, जिससे कि आम आदमी को परेशानी न हो?? क्या चुनाव प्रचार और वोटिंग भी सोशल नेट.सुविधा से कराने का समय नहीं आ गया, ताकि मँहगी चुनाव प्रक्रिया में कम से कम खर्चा और कमसे कम मानव श्रम की जरूरत पड़े।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ