खामोशी


डॉ. राजेश पुरोहित, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

लब सिल गए अजब की खामोशी है।

हर ओर है चुप्पी देखो गज़ब की खामोशी है।।

 

बात मुद्दत से चली आ रही है जो शायद।

मेरी समझ मे सिर्फ उसकी खामोशी है।।

 

रात तो कट ही गई सुबह का सूरज आ चढ़ा।

जानें क्यों फिर भी यहाँ फैली खामोशी है।।

 

टूट चुके हैं ख्वाब सारे जो देखे थे खुली आँखों से।

जिन्दगी में अंधेरों की वजह खामोशी है।।

 

सकूं से कहाँ रहते हैं जमाने मे लोग भला।

अमन की बात पर छा रही खामोशी है।।

 

बह रहे हैं अश्क बेफिजूल में पुरोहित मगर।

जमाने की नज़र में इसकी वजह खामोशी है।।

 

भवानीमंडी, राजस्थान

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