हमारे जीवन में आलोक फैलाता है शिक्षक


डॉ. राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

शिक्षक को  गुरु कहकर ब्रह्म विष्णु महेश से बढ़कर बताया गया है। गुरु का अर्थ है वह व्यक्ति जो मनुष्य के अज्ञान रूपी अंधकार को हर लेता है। ज्ञान का आलोक फैला देता है। भगवान रूठ जाए तो मना लोगे लेकिन गुरु नहीं रूठना चाहिए। इसलिए गुरु की आज्ञा को मानना चाहिए।

गुरु बिन भवनिधि तरहिं न कोई,जो विरंचि शंकर सम होई।

शिक्षक शिक्षा देता है ज्ञान विज्ञान खगोल भूगोल का ज्ञान करवाता है  हर क्षेत्र में शिष्य को प्रवीण करने का कार्य करता है। समाज मे शिक्षक का दोनों हाथ जोड़कर सम्मान किया जाता है। वह निष्काम भाव से अनगढ़ को पढ़ाकर डिग्री दिलवाता है। शस्त्र शास्त्र का ज्ञान कराता है। शिक्षा व्यक्ति की और समाज की सर्वतोन्मुखी  विकास की सशक्त प्रक्रिया है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन का यह कथन व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा की महत्ता बताता है। समाज के विकास की जब हम बात करते हैं तो शिक्षा सर्वप्रथम आती है। वैदिक युग से लेकर आज तक भारत में शिक्षा का मूल आशय यह रहा है कि शिक्षा प्रकाश का वह स्रोत है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा सच्चा पथ प्रदर्शन करती है।

वैदिक कालीन शिक्षा गुरुकुल में गुरु दिया करते थे जहाँ गुरु शिष्य को ऐसा ज्ञान देते थे, जिससे वह आत्मा परमात्मा में भेद कर सके। ऐसी शिक्षा विद्यार्थी को दी जाती थी जिससे वह मोक्ष की प्राप्ति स्वयं कर सकता था।"सा विद्या या विमुक्तये"। शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है। शिक्षक भविष्य निर्माता होता है। शिक्षक का जीवन उस मोमबती के समान है, जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देती है। शिक्षक अज्ञान का अंधेरा दूर कर शिष्य के जीवन मे आलोक भर देता है। आज की शिक्षा में आध्यात्म, नैतिक शिक्षा, जीवनमूल्यों की शिक्षा को समावेशित करने की आवश्यकता है। किताबी ज्ञान के साथ विद्यार्थी की रुचि अनुसार व्यवसाय का ज्ञान देने की पढ़ाई के साथ जरूरी है। ताकि हुनर वाला विद्यार्थी रोजगार के लिए भटके नहीं। वैज्ञानिक सोच के साथ आधुनिक तकनीकी व प्रधोगिकी के क्षेत्र में विद्यार्थियों को आगे बढ़ाने का प्रयास सतत चलाने की महती आवश्यकता है। एक शिक्षक सीखने व सिखाने की प्रक्रिया को सहजता और विशेषज्ञता के साथ करता है। 

 

भवानीमंडी, राजस्थान 

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