दिनकर 

प्रीति शर्मा "असीम ", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

साहित्य जगत के "अनल" कवि का,

धैर्य जब चक्रवात पाता है ।

तब "दिनकर "भी "दिनकर" से, 

दीप्तिमान हो जाता है ।

 

"ओज" कवि "रश्मिरथी "पर, 

जब-जब हुंकार लगाता है ।

"आत्मा की आंखें "

कैसे ना खुलेगी ।

पत्थर भी पानी हो जाता है।

 

साहित्य 

जगत के "अनल "कवि का।

"भारतीय संस्कृति के चार अध्याय" रच कर ,

भारत का विश्व में नाम किया।

"कुरुक्षेत्र "रच कर। 

आधुनिक गीता का निर्माण किया ।

 

"शुद्ध कविता की खोज" में निकला ।

"उजली आग का स्वाद" चखा।

रेणुका ,उर्वशी ,रसवंती ,

यशोधरा का द्वंद गीत लिखा ।

 

सपना देख के 

"सूरज के विवाह" का ।

"हारे को हरी नाम "भज कर। 

अंतिम इतिहास रचा ।

 

कैसे भूल सकता ।

साहित्य दिनकर को ,

उसने जो इतिहास रचा।

 

"अर्धनारीश्वर "की सार्थकता को, 

साहित्य वन में छोड़ चला ।

 

साहित्य भूला नहीं सकता ।

ज्ञान ,पदमभूषण ,

भूदेव के अधिकारी को ।

सिमरिया की माटी को ,

उस "दिनकर "

काव्य अवतारी को।

 

 नालागढ़, हिमाचल प्रदेश