घनश्याम सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आंख खोलकर देख लली
मन ही मन में सोचे माता!
लक्ष्मी बनकर आई लली
खुद गीले में सोई माता
पर सूखे में सोई लली
भूखे रहकर भूख मिटाई
पल-पल दूध पिलाई लली
मन ही मन में सोचे माता
लक्ष्मी बनकर आई लली
लाड़ प्यार से पाला पोसा
बड़े जतन में खिली कली
मां का प्यार अरे ठुकराकर
निष्ठुर बेटी कंहाँ चली
मन ही मन में सोचे माता
लक्ष्मी बनकर आई लली
कदमों में तेरी मां का सिर है
आंख खोलकर देख लली
कंहीं और देर न हो जाये
तू जल्दी घर को लौट लली
त्रिभाषी रचनाकार
Tags
poem