प्रभाकर सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
वो लुत्फ़-ए-मोसक़ी तो उठाता है आदमी
समझी है उसने बात भी जो हमज़बाँ नहीं
टुकड़े कई हयात के बिखरे इधर उधर
रहते हैं हर जगह मगर रहते वहाँ नही
वो वरग़लाते रहते हैं अक्सर अवाम को
चेहरे पे तो हैं दिखते शिक़न के निशाँ नहीं
है गुज़री ज़िंदगी कई लोगों की साथ साथ
वो हमसफ़र हुए थे मगर हमनवाँ नहीं
जारी है इक तलाश वफ़ादार कोई हो
अब तक मिला नहीं है वो खोजा कहाँ नहीं ।
शोध छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश।
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