शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
1977 में सर्वप्रथम ओबीसी को प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राम नरेश यादव व बिहार के मुख्यमंत्री और जननायक कर्पूरी ठाकुर ने लागू किया, जिसके कारण इन लोगों को अपने मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन लाकर नौवीं लोकसभा चुनावों ने भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरुआत की थी। सामाजिक न्याय के मसीहा विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने और उन्होंने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों के लिए नए अवसरों के द्वार खोल दिये। वीपी सिंह ने पिछड़ी जातियों को आरक्षण पर बनी मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया।
पिछड़ा वर्ग आरक्षण के विरोध में मनुवादी व्यस्था ने देश को आग के हवाले किया
मंडल कमीशन लागू होते ही देश भर में आरक्षण को लेकर आग लग गई। आरक्षण के खिलाफ लोग सड़कों पर उत्तर गये और देश भर में कई हिंसक झड़प भी हुए। 19 सितंबर, 1990 को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एसएस चौहान ने आरक्षण के विरोध में आत्मदाह कर लिया। 24 सितंबर 1990 को पटना में आरक्षण विरोधियों और पुलिस के बीच झड़प हुई, जिसमें पुलिस फायरिंग में चार छात्रों की मौत हो गई। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर सियासी रोटियां भी खूब सेकीं।
पिछड़ा वर्ग आरक्षण ( मण्डल कमीशन) लागू कराने में लालू प्रसाद यादव, जगदेव प्रसाद कुशवाहा, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, शरद यादव आदि पिछड़े नेताओ का अहम योगदान रहा। सबसे बड़ी जिम्मेदारी लालू यादव ने उठाई थी। सुप्रीम कोर्ट में पैरवी लालू यादव ने ही की थी, जिसके कारण मनुवादी व्यस्था ने उन्हें जानबूझ कर साजिशन घोटाले में फसा कर जेल में भिजवा दिया था। उस समय पिछड़ा वर्ग आरक्षण विरोधियों ने लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव जैसे आदि पिछड़े समाज के नेताओ को भद्दी भद्दी गालियां देने के साथ कुत्ते-गधे पर इनके पोस्टर लगा घुमाए थे।
क्या है मंडल कमीशन
1979 में मोरारजी देसाई की सरकार द्वारा गठित किये गए 6 सदस्यों वाले इस आयोग की निगरानी बिहार के 7वें मुख्य मंत्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल कर रहे थे। उनकी रिपोर्ट अगले साल (1980) में आई। मंडल आयोग ने जातियों को आरक्षण के सूत्र में बांधने के लिए पूरे देश का भ्रमण किया, पिछड़ों का आकलन किया, जिसमें 3743 जाति तथा समुदाय शामिल थे, जिन्हें ओबीसी का दर्ज़ा देने के साथ तत्कालीन आरक्षण 22.5% में 27%और जोड़ने का सुझाव दिया गया।
मण्डल आरक्षण घटनाक्रम
20 दिसंबर 1978 सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति की समीक्षा के लिए मोरारजी देसाई सरकार ने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की घोषणा की।
1 जनवरी 1979 आयोग के गठन के लिए अधिसूचना जारी।
31दिसंबर 1980 मंडल आयोग ने तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपी, इसमें अन्य पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने की सिफारिश की गई।
सन 1982 आरक्षण पर मंडल कमीशन की रिपोर्ट को संसद में पेश किया गया, परंतु कुछ हुआ नहीं। फाइल ठंडे बस्ते चली गई।
सन 1989 लोकसभा चुनाव में जनता दल ने आयोग की सिफारिशों को चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया।
7 अगस्त 1990 तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा की।
9 अगस्त 1990 मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह से मतभेद के बाद उप-प्रधानमंत्री देवीलाल ने इस्तीफ़ा दे दिया।
10 अगस्त 1990 आयोग की सिफारिशों के तहत सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने के खि़लाफ पूरे देश मनुवादी व्यस्था ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
13 अगस्त 1990 मंडल आयोग की सिफारिश लागू करने की अधिसूचना जारी।
14 अगस्त 1990 अखिल भारतीय आरक्षण विरोधी मोर्चा के अध्यक्ष मनुवादी उज्जवल सिंह ने आरक्षण प्रणाली के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
मण्डल कमीशन पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में लड़ने के लिए कोई वकील नहीं तैयार हो रहा था (इसका मुख्य कारण आरक्षण विरोध वकीलों का कोर्ट में बहुताय संख्या बल) लालू प्रसाद के बहुत निवेदन व आग्रह, मानने पर राम जेठमालानी ने सुप्रीम कोर्ट में मण्डल कमीशन के पक्ष में केश लड़े। अंततः जीते। इसी कारण लालू प्रसाद य्यादव गहरी साजिश के शिकार हुए और आज साजिशन चारा घोटाले के आरोप में जेल में हैं।
सच्चाई यह है कि उत्तर भारत के दो महानायकों-लालू प्रसाद यादव व मुलायम सिंह यादव की देन है कि पिछड़े-दलित सम्मान से जीने लगे। आज पिछड़े-दलित जो खटिया, कुर्सी पर बैठने लगे, इन्हीं नेताओं की देन है और बेवकूफ अतिपिछड़े कहते हैं कि मुलायम व लालू अपनी जाति के अलावा क्या किया ? मनुवादी ताकतों ने मण्डल कमीशन का दुष्प्रचार ऐसे किया कि पिछड़े जाति में आने वाले कुछ छात्र भी अज्ञानतावश विरोध करने सामिल हो गए।
19 सितंबर 1990 दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एसएस चौहान ने आरक्षण के विरोध में आत्मदाह कर लिया। एक अन्य छात्र राजीव गोस्वामी ने भी खुद को आग लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश की और बुरी तरह झुलस गया।
24 सितंबर 1990 पटना में आरक्षण विरोधियों और पुलिस के बीच झड़प हुई। पुलिस फायरिंग में चार छात्रों की मौत।
1 अक्टूबर 1991 सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आरक्षण के आर्थिक आधार का ब्यौरा मांगा।
2 अक्टूबर 1991 आरक्षण विरोधियों और समर्थकों के बीच कई राज्यों में झड़प। गुजरात में शैक्षणिक संस्थान बंद किए गए।
10 अक्टूबर 1991 इंदौर के राजवाड़ा चौक पर स्थानीय छात्र शिवलाल यादव ने आत्मदाह की कोशिश की।
30 अक्टूबर 1991 मंडल आयोग की सिफारिशों के खि़लाफ़ दायर याचिका की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया।
17 नवंबर 1991 राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और उड़ीसा में एक बार फिर उग्र विरोध प्रदर्शन हुआ। उत्तर प्रदेश में गिरफ़्तार सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने गोरखपुर में 16 बसों में आग लगाई।
19 नवंबर 1991 सुप्रीम कोर्ट ने भी मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की अनुमति दे दी। दूसरी तरफ दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में पुलिस और छात्रों के बीच झड़प हुई जिसमें लगभग 50 लोग घायल हुए। मुरादाबाद में दो छात्रों ने आत्मदाह का प्रयास किया।
16 नवंबर 1992 सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फ़ैसले में मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने के फ़ैसले को वैध ठहराया। साथ ही आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत रखने और पिछड़ी जातियों के उच्च तबके को इस सुविधा से अलग रखने का निर्देश दिया।
8 सितंबर 1993 केंद्र सरकार ने नौकरियों में पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण देने की अधिसूचना जारी की।
20 सितंबर 1993 दिल्ली के क्रांति चौक पर राजीव गोस्वामी ने इसके खिलाफ़ एक बार फिर आत्मदाह का प्रयास किया।
23 सितंबर 1993 इलाहाबाद की इंजीनियरिंग की छात्रा मीनाक्षी ने आरक्षण व्यवस्था के विरोध में आत्महत्या की।
20 फरवरी 1994 मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत वी. राजशेखर पिछड़ा वर्ग आरक्षण के जरिए नौकरी पाने वाले पहले अभ्यर्थी बने। समाज कल्याण मंत्री सीताराम केसरी ने उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपा।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में 23 मार्च, 1994 में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण अधिनियम- 1994 की अनुसूची-1 में विनिर्दिष्ट 55 प्रविष्टियों में पिछड़ी जातियों/ वर्गो को अधिसूचना संख्या 488/17- वी - (क) 6- 1994 के द्वारा जारी किया गया।
पंचायतीराज अधिनियम-1994 के अनुसार मुलायम सिंह यादव ने त्रिस्तरीय पंचायत पंचायतों व पंचायती राज अधिनियम (नगर निकाय)-1995 के अनुसार त्रिस्तरीय नगर निकायों (नगर पंचायत,नगर पालिका परिषद व नगर निगम) में ओबीसी को 27%,एससी/एसटी को 22.5% व महिलाओं को 33% आरक्षण की व्यवस्था कर वंचित वर्गों के सम्मान का रास्ता खोले। मुलायम सिंह की ही देन है कि पिछड़े दलित ग्राम प्रधान, प्रमुख, जिला पंचायत अध्यक्ष, पार्षद,चेयरमैन, मेयर आदि बनने लगे। 10 अप्रैल 2008 को ओबीसी को उच्च शैक्षिक संस्थान आईआईटी आईआईएम तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के द्वारा ओबीसी को प्रतिनिधित्व दिया गया, जबकि इसके पहले बी पी सिंह ने प्रतिनिधित्व सिर्फ नौकरियों में दिया था, जबकि शिक्षा में आरक्षण अर्जुन सिंह ने दिया, जो 2014 में भाजपा की मोदी सरकार द्वारा शिक्षा में आरक्षण को समाप्त कर दिया, जिसका नतीजा है की 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी का कोई प्रोफ़ेसर नहीं है।
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