महात्मा ज्योतिबा फूले के 'सत्य शोधक मिशन' को कुर्मी राजा क्षत्रपति शाहू महाराज ने उतराधिकारी के रूप में नेतृत्व देकर आगे बढ़ाया। सभी शूद्र (obc) जातियां उनके नेतृत्व के साथ जुड़ी हुई थी, लेकिन शाहूजी महाराज के बाद जब बाबा साहब अम्बेडकर ने उनके उत्तराधिकारी के रूप में इस मिशन की बागडोर संभाली तो बाबा साहब अम्बेडकर अतिशूद्र (अछूत) होने की वजह शूद्र जातियां इस मिशन से दूर भागने लगी, मगर बाबा साहब अंबेडकर का एक सक्षम नेतृत्व होने की वजह उन्होंने अपने दम पर फूले/शाहू मिशन को सफलता के साथ आगे बढ़ाया, लेकिन इस दौरान शूद्र जातियां सवर्ण नेतृत्व के साथ समायोजित होकर अपनी सत्यशोधक अस्मिता को पूरी तरह नष्ट कर चुकी थी।
क्षत्रपति शाहू महाराज के 1922 में परिनिर्वाण के 46 साल बाद ब्राह्मणवाद से छुटकारा पाने के लिए उत्तर भारत में अर्जक संघ की स्थापना 1 जून 1968 को महामना रामस्वरूप वर्मा (कुर्मी) और चौधरी महाराज सिंह भारती (जाट) ने की। इनकी जोड़ी मार्क्स और एंगेल जैसे वैचारिक मित्रों की जोड़ी थी। दोनों का अन्दाज बेबाक और फकीराना था। दोनों किसान परिवार के थे और दोनों के दिलों में आत्मसम्मान की ज्वाला धधक रही थी। ब्राह्मणवादी ऊंच नीच की व्यवस्था में शूद्र-अतिशूद्र जातियां नीच बनकर हिन्दू क्यों कहलायें ? इस मूल सवाल को केंद्र में रखकर अर्जक संघ की स्थापना की गई थी।
अर्जक संघ की स्थापना देखा जाय तो महात्मा ज्योतिबा फूले के सत्यशोधक समाज की पुनर्स्थापना थी। अर्जक संघ ने आजादी के बाद 1970 के दशक में शूद्र जातियों में आत्मसम्मान की चाहत पैदा की। जातीय शोषण और धार्मिक आडंबरवाद के विरुद्ध आवाज बुलंद की। अर्जक संघ मानववादी श्रमण संस्कृति का विकास करने का काम करता है। इसका मकसद मानव में जाति को खत्म कर समता का विकास करना, ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर करना और सबकी उन्नति के लिए काम करना है। अर्जक संघ अपने मिशन को ऐतिहासिक आदर्शवाद से जोड़कर 14 मानववादी त्योहार मनाता है। इनमें गणतंत्र दिवस, आंबेडकर जयंती, बुद्ध जयंती, स्वतंत्रता दिवस, महात्मा फुले जयंती के अलावा बिरसा मुंडा और पेरियार रामास्वामी की पुण्यतिथियां आदि शामिल हैं।
अर्जक संघ का दर्शन और उसकी विचारधारा बेजोड़ है, अकाट्य है। यह पदार्थवाद एवं मानव समता पर आधारित है। अर्जक संघ के अनुयायी सनातन ब्राह्मण संस्कृति के उलट जीवन में सिर्फ दो संस्कार ही मानते हैं- विवाह और मृत्यु संस्कार। अर्जक विचारधारा के संस्थापक रामस्वरूप वर्मा जी सिर्फ राजनेता ही नहीं थे, बल्कि एक उच्चकोटि के दार्शनिक, चिंतक और रचनाकार भी थे। वे रैदास और कबीर की सामाजिक चेतना को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे थे। ललई सिंह यादव और बिहार के लेनिन कहे जाने वाले जगदेव प्रसाद कुशवाहा का अर्जक संघ के प्रचार-प्रसार में बहुत बड़ा योगदान रहा है। महाराज सिंह भारती, मंगलदेव विशारद जैसे बुद्धिवादी चेतना से लैस नेता अर्जक संघ के केंद्र बिंदू थे।
अर्जक संघ की स्थापना का उद्देश्य पहले शूद्र जातियों को सनातन ब्राह्मण संस्कृति के चंगुल से बहार निकाला जाय। फिर उन्हें श्रमण संस्कृति से जोड़कर संघठित किया जाय। फिर इस संगठित सांस्कृतिक परिवर्तन को वोटों में बदलकर राजनीतिक सत्ता हाशिल की जाय। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए महामना रामस्वरूप वर्मा ने अपनी व्यक्तिगत राजनीति के बजाय अर्जक संघ के सांस्कृतिक परिवर्तन को ज्यादा महत्व दिया था।
अर्जक संघ जितना प्रभाव समाज पर जमा सकता था उतना नही जमा पाया इसका मुख्य कारण यह था कि तत्कालीन शूद्र जातियों के नेताओं ने सांस्कृतिक परिवर्तन के बजाय राजनैतिक परिवर्तन को ज्यादा महत्व दिया। बल्कि इस दौरान विशेषकर मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे बड़े नेताओं ने तो कट्टर हिन्दू बनकर ब्राह्मण संस्कृति को ही ज्यादा मजबूत किया। ये नेता राजनैतिक तौर पर तो सामाजिक न्याय की बात जरूर करते हैं, लेकिन जो समाज इनके साथ अन्याय करता है उसमें कोई बदलाव नही चाहते। अर्थात इनका संघर्ष अन्याय की व्यवस्था में रहकर न्याय के लिए संघर्ष करना रहा है जो ठीक उसी तरह है जैसे बाल्टी में बैठकर बाल्टी को उठाना। काश! इन नेताओं ने अर्जक संघ के सांस्कृतिक परिवर्तन को महत्व दिया होता, निश्चित रूप से आज परिस्थितियाँ अलग होती।
निष्कर्ष के तौर पर हम कहा जा सकता है कि महामना रामस्वरूप वर्मा सनातन ब्राह्मण संस्कृति की सभी आस्था परम्परा मान्यता संस्कार त्योंहार व्रत से समाज को छुटकारा दिलाकर अर्जक संघ के माध्यम से बहुजन श्रमण संस्कृति जो बुद्ध से लेकर रैदास कबीर फुले अम्बेडकर तक की पूरी विरासत है उसे समाज में स्थापित करना चाहते हैं।
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