अशोक काकरान, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी की मौत हो गई। प्रशासन ने फिलहाल जोशी के परिवार को दस लाख रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की है और उनकी पत्नी को शैक्षिक योग्यता के आधार पर नोकरी देने की बात भी की है। यह पहला मामला नहीं है जिसमे पत्रकार को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। पूर्व में भी इस प्रकार क़ातिलाना हमलों का पत्रकार शिकार होते रहे हैं। अब बहुत हो चुका है, आगे से किसी भी पत्रकार के ऊपर कोई भी हमला होता है तो बर्दास्त नही किया जाएगा और सरकार को उसकी जवाबदेही तय करनी होगी। अपराधी तत्वो के हौसले दिनों दिन बुलन्द होते जा रहे हैं। निरंकुश प्रशासन बौना साबित हो रहा है। इससे इनकार नही किया जा सकता है कि अपराधी लोगो को राजनीतिक और पुलिस सरंक्षण मिलने के कारण इस तरह की घटनाओं में वृद्धि होती है।
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकार पर हमला करने वालो को फाँसी की सजा से कम सजा नही होनी चाहिये। पत्रकार समाज का सजग प्रहरी होता है। अपनी जान की बाजी लगाकर बहुत कठिन हालातो में खबरों को तलाशता है। कुछ असामाजिक तत्वों को पत्रकार हमेशा खटकते रहते हैं। धमकियां दी जाती हैं और उनका मनोबल तोड़ने का काम किया जाता है लेकिन फिर भी पत्रकार किसी की भी परवाह ना करते हुए अपने मिशन से हटता नही है। देश के लगभग हर प्रदेश में पत्रकारों पर बढ़ते हमलों को लेकर सरकार को गम्भीर होना होगा। दिवंगत पत्रकार विक्रम जोशी के परिवार को एक करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की जाए और पत्रकारों की सुरक्षा व्यवस्था तय की जाए। देश की जनता को भी पत्रकारों के प्रति जागरूक होना चाहिये। पत्रकार उनकी तमाम दिक्कतों, परेशानियों को समय समय पर उठाते रहते हैं और उनका समाधान करवाते हैं। जनता को भी पत्रकारों के समर्थन में सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है।
वरिष्ठ पत्रकार, राजपुर कलां (जानसठ) मुजफ्फरनगर
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