राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
देवभूमि हिमाचल प्रदेश के बर्फीले पहाड़ों में बहुधा ऐसे दिव्य तीर्थ स्थल व देवस्थल है, जिनका धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्व है। आज इसी संदर्भ में हम आपको ले चलते है हिमाचल प्रदेश के जिला किन्नौर के किन्नर कैलाश पर्वत श्रृंखला की यात्रा पर। किन्नर कैलाश समुद्रतल से 17222 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। इस विशाल चट्टान के रूप में शिवलिंग की ऊंचाई 79 फिट है। इस स्थान की यात्रा पर प्रत्येक वर्ष बहुत यात्री आते है। इतनी ऊंचाई पर अवस्थित इस शिवलिंग की विशेष बात यह है कि यह शिवलिंग सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कई तरह के रंगों में परिवर्तित होता रहता है। किन्नर कैलाश का दृश्य सूर्योदय से पूर्व शंख सदृश, सूर्योदय होने के पश्चात पित वर्ण का एवं मध्याह्न कालीन समय अवधि के चलते रक्त वर्ण अर्थात लाल रंग का हो जाता है। सूर्यास्त की बेला में सुनहरे पित रंग की आभा से युक्त प्रतीत होता रहता है। किन्नर कैलाश अनंतकाल से हिंदुओं व बौद्ध धर्म के लोगों का आस्था का मुख्य केंद्र रहा है। इसे हिमाचल प्रदेश के बद्रीविशाल की संज्ञा दी गयी है। किन्नर कैलाश के संदर्भ में अनेकानेक जनश्रुतियां प्रचलित रही है, जिनके अनुसार प्रत्येक युगों में इसे इंद्रनील पर्वत श्रृंखला कहा जाता था। कहते है कि इसी पर्वत श्रृंखला पर भूतभावन भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा हेतु युद्ध किया था और अर्जुन को भगवान शिव से पाशुपतास्त्र इसी पर्वत श्रृंखला में प्राप्त हुआ था।
किन्नौर को किन्नर, कनावर, कनोरिंग कुणावर आदि नामों से भी जाना जाता था। किन्नौर को प्राचीन काल मे किन्नर देश के नाम से भी जाना जाता था। इसका उल्लेख एक संस्कृत श्लोक में भी आया है:-
चंद्रभागा नदी तीरे अहोति किन्नरतदा
महाभारत ग्रन्थ के पर्वों में विभक्त दिगविजय पर्व में गांडीव धनुर्धारी अर्जुन का किन्नर देश जाने का वर्णन मिलता है। वायुपुराण के अंतर्गत महानील पर्वत जो इन्द्रासन पर्वत के निकट है, यहां किन्नरों के आधिपत्य माना जाता है। शोणितपुर सराहन असुर सम्राट बाणासुर की राजधानी थी। एक जनश्रुति के चलते कैलाशमानसरोवर से प्रवाहित नदी शोणित शतद्रु सतलुज को बाणासुर ही शक्ति द्वारा यहां बहाकर लाया था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार बाणासुर दैत्य का समकालीन समय युगावधि भगवान श्रीकृष्ण के द्वापरकालीन के समय की मानी जाती है। बाणासुर भगवान श्रीकृष्ण जी से द्वेष रखता था। बाणासुर की पुत्री ऊषा को एक रात्रि श्रीकृष्ण जी के पौत्र अनिरुद्ध के स्वप्न में दर्शन हुए। प्रातः काल ऊषा ने यह स्वप्न अपनी सहचरी चित्रलेखा को कह सुनाया, क्योंकि चित्रलेखा चित्रकला में पारंगत थी, उसने हुबहु वैसा ही चित्र बनाया जैसा वर्णन ऊषा ने किया था। मालूम होने पर चित्रलेखा ने अपनी मायावी आकाशगामी विद्या से अनिरुद्ध का शयनावस्था में ही द्वारिका से अपहरण करके शोणितपुर ले आयी। यहाँ पर कुछ समय पश्चात श्रीकृष्ण जी ने बाणासुर का घमंड तोड़ा था। तदुपरांत ऊषा व अनिरुद्ध का विवाह सम्पन्न हुआ था। आज भी उषा व चित्रलेखा के मंदिर किन्नौर जिले में देखे जा सकते है।
यह भी माना जाता है कि बाणासुर शोणितपुर से किन्नर कैलाश नित्यप्रति शिव पूजन हेतु जाया करता था। किन्नर कैलाश अपने आपमें आध्यात्मिक व श्रद्धा भक्ति की असीम ऊर्जाओं से भरा हुआ है। यहां पहुंचकर श्रद्धालुगण अपने आपको धन्य धन्य समझते है। यहां पर औषधियों गुणों से युक्त अनेक प्राकृतिक जड़ी बूटियां व ब्रह्मकमल भी देखने को मिलते है।
यह यात्रा अन्य कैलाशों की भांति कठिन है, इसलिए जरूरी सामान व गर्म कपड़ों को अपने साथ अवश्य ले जाए। यहां की यात्रा का सबसे बेजतर समय जून से अगस्त के मध्य ही रहता है। उसके बाद यहां पर ताजा बर्फबारी हो जाती है, जिसके कारण अत्यंत ठंड व रास्ते भी बन्द हो जाते है। वर्ष 1993 की समय अवधि में इस यात्रा को मान्यता मिली अर्थात पर्यटकों के लिए उसी वर्ष से खोल दिया गया। यहां हिन्दू व बौद्ध दोनो धर्मों के लोग अर्चना करते है।
शेष फिर....
संस्कृति संरक्षक, आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश
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