उमा ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आख़र-आख़र जोड़कर
शब्दों का संसार बसाया
अनसुलझे सवालों का
आसान सा
हल अक्सर मैनें पाया.
कोरे कागज़ सा बचपन
स्याही से तुमने सजाया.
था मैं कच्ची मिट्टी का घड़ा
आकार तुमसे ही पाया.
टिमटिमा रहा था जुगनू सा
उजाले का सूरज तुमने बनाया.
तुम थे साथ हर पल
प्रथम गुरू माँ की डांट में
पिता की चिन्ता में.
जीवन रूपी सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते
कभी गिरा कभी संभला
फिर गिरा फिर संभला
यह संबल
तुम्हारी सीख से ही पाया.
तख्ती, स्लेट, ब्लैकबोर्ड से
ऑनलाईन क्लासेज़
तक का रोमांचक सफ़र
हाईटैक होती युवा सोच में
नैतिकता का बीज बौ कर
विश्व पटल पर
भारतीय संस्कृति का
परचम लहराया.
शत् शत् नमन उन गुरू चरणों में
मानवता का पाठ पढ़ाकर
जीवन मूल्य जिसने
हम सब को सिखलाया.
आयुष साहित्य सदन (पंथाघाटी) शिमला
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