आशुतोष, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
यह बारिश का मौसम बड़ा सुहावन और मनभावन होता है। प्रकृति अपना जीवन तत्व प्राणरूपी बारिश से नहाकर हरियाली की गोद में होती है। वहीं रंग विरंगे जीव, जलीय जीव प्रकृति की इस उपहार को पाकर सुन्दर गीत गाते हैं । वहीं गाँव के किसान भी खुशी के गीत गाकर खेतो में फसल लगाते हैं बडा ही सुन्दर नजारा होता है।
भला मैं कैसे पीछे रह सकता मैं भी बारिश में अक्सर भींगता हूँ, लेकिन शहर की गंदी गलियों में जहाँ कूडे के सड़े ढ़ेर होते, नालियों से बहता गंदा पानी। आते-जाते सैकड़ों गज रोज गुजरना होता, क्योंकि शहर अब हो चुकी बिन बहता पानी। यहाँ एक दिन बरसात होती कई दिनों तक पानी ही पानी रहती। सभी का आना जाना बड़ा ही गंदा करता। घर में पानी भी कभी महक जाता बदबू दार मौसम लगता क्या करूँ बारिश में भी दिन भर घर में पड़ा रहता। अब तो घर में भी पानी घुस जाता है।कई सामान वर्वाद कर जाता। करोड़ों खर्च होता इन पर आखिर सब कहाँ जाता? वैसे शहर में छत भी होते, लेकिन उस पर मकान मालिकों का कब्जा रहता। पार्क भी है बहुत लेकिन वहाँ अभद्रता की लीला होती लोकलाज और निर्लज्जता में नहाकर ऐ शहर की बारिश मुझे गाँव ही अच्छा लगता और वहाँ आकर मैं, ऐ बारिश पुनः भींगना चाहता।
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