अशोक काकरान, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मित्र ने टिप्पणी की, फादर डे, मदर डे की अपार सफलता को देखते हुए जल्द ही मामा डे, मामी डे, मौशी डे, मौसा डे, काका डे,काकी डे आदि डेज की घोषणा की जाएगी। मित्र का मानना है कि सभी रिश्तों की इंसानी जिंदगी में बहुत अहमियत होती है। सभी रिश्ते इंसान की जिंदगी से जुड़े होते हैं, चाहे आबाद करने वाले हो या बर्बाद करने वाले हो। इन्सान को आबाद करने वालो में निकट के रिश्ते नाते अहम भूमिका निभा रहे होते हैं तो बर्बाद करने वाले भी अधिकांश निकट सम्बन्धी ही होते हैं। आबाद और बर्बाद करने वालो को भी तो सेल्यूट होना चाहिये। मित्र अनुभवी व्यक्ति हैं। शायद ही कोई तजुर्बा हो जो जिंदगी को छूकर ना गया हो।
बहरहाल डे मनाने की परम्परा कब शुरू हुई, क्यो शुरू हुई, हमारे लिए यह बात महत्व नही रखती। हम तो यह जानते है केवल कि जिन रिश्तों को लेकर अभी तक किसी ने कोई सेलेब्रेशन डे नही निर्धारित किया, उन रिश्तों पर क्या बीत रही होगी? बहुत लोग देखे है जो पालतू कुत्ते बिल्ली के जन्मदिन मनाते हैं लेकिन घर मे रह रहे माता पिता के जन्म उनको याद नही। बेमिसाल लोगो की बेमिसाल बात। संस्कार की बात नही, बस अब तो सरोकार की बात कीजिए। जिससे मतलब पड़ा वही महान हो गया। दुनिया मे सबसे अच्छा भी वही हो गया। इस स्वार्थों से भरी दुनिया मे फिर चाहे कोई भी डे रोज मनाओ, कोई फर्क नही पड़ने वाला। जब रिश्ते ही मतलब और स्वार्थ की बुनियाद पर टिके हो। आज वक्त बेरहम होता जा रहा है, सम्बन्धो को खोता जा रहा है। वक्त के साथ इंसानी स्वभाव भी बदलकर बेरहम और स्वार्थपरत हो गया है। मनाने के लिए चाहे जितने डे मना लीजिए, लेकिन जब भाव और भावनाओं का ही रिश्ता कमजोर हो गया तो किसी भी डे का कोई सार्थक अर्थ नही रह जाता।
राजपुरकलां, खतौली (मुज़फ्फरनगर) यूपी