अभिषेक गोयल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मिलना था इत्तेफाक, बिछड़ना नसीब था,
वो उतना ही दूर हो गया जितना करीब था।
मैं उसको देखने को तरसती ही रह गई,
जिस शख्स की हथेली में मेरा नसीब था।
बस्ती के सारे लोग ही आतिश परस्त थे,
घर जल रहा था जब की समंदर करीब था।
दफना दिया गया मुझे चांदी की कब्र में,
मैं जिसको चाहती थी वो लड़का गरीब था।
अंजुम मैं जीत कर भी यही सोचती रह गई,
जो हार कर गया वो बड़ा खुशनसीब था।
मुहब्बतों का सलीका सिखा दिया मैंने...
तेरे बगैर भी जी के दिखा दिया मैंने ...
बिछड़ना मिलना तो किस्मत की बात है
दुआएं दे तुझे शायर बना दिया मैंने...
जो तेरी याद दिलाता था,चहचहाता था ,
मुंडेर से वो परिंदा उडा दिया मैंने ......
जहाँ सजा के मैं रखता था तेरी तस्वीरें
अब उस मकान में ताला लगा दिया मैंने..
ये मेरे शेर नहीं मेरे जख्म है अभिषेक ,
गजल के नाम पे क्या क्या सुना दिया मैंने.