सुनिता ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
अगर मैं कह दूँ कि वेलेंटाइन
हमारी रीती नही, हमारा ये त्यौहार नहीं
महबूब ख़फा होकर कह न दें
बात तुम्हारी मुझे स्वीकार नहीं ।
"मैं"
एक फूल से हो मुकम्मल
प्यार तूमसे इतना कम नहीं
महबूब तुम्हारे और भी हैं,
इसका भी हमको गम नही।
मेहबूब मेरे तू नौशाद रहे,
जंहान तेरा आबाद रहे।
खिली रहे फुलवारी सदा,
आँगन में तेरे हरियाली रहे।
हम जंहान में रहे न रहे
साथ तेरे खुशहाली रहे ।
अस्मत पर तेरी मिटने बाले
महबूब-ए-वतन है लाखों मे।
तमन्ना मेरी 'दम निकले गोद में तेरी
और छवि रहे तेरी आँखों में।
फ़क्र है ये आज मुझे,
मैं भी एक 'सिपाही ' हूं
मेहबूब वतन, मेरे 'सनम'
तेरी ही हमराही हूं ।।
गॉव काम्बलू, तहसील करसोग, जिला मंण्डी हिमाचल प्रदेश
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