आशुतोष, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कदम से कदम मिलाता चला
मैं उम्मींदो का दामन थाम के।
कंटीली राहें भी आसान
हो गयी साथ तेरा पा के ।
दोनो का विश्वास बना रहे
मंजिल खुद आएँगे चल के।
तेरा साथ ही उम्मीद है मेरी
बाकि मिथ्या है तूझे पा के।
आओ मैं यकीन दिला दूँ
वाणी रस तुझे पिला के।
शाम सवेरे यूँ संवरती हो
प्रेम का का रस बरसा के
नयनो का काजल तो ऐसे
जैसे काली घटा बरखा के।
होठ गुलाबी पंखुरी सी
जैसे गुलाब हो चमन के
संगमरमर सी काया तेरी
उम्मीद की किरण बरसा के।
पटना बिहार
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